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पिण्डैषणा-पद PINDAISHANA-PAD (SEGMENT OF SEARCH FOR FOOD)
२६३. तिविहे उवहडे पण्णत्ते, तं जहा-फलिओवहडे, सुद्धोवहडे, संसट्ठोवहडे। म २६४. तिविहे ओग्गहिते पण्णत्ते, तं जहा-जं च ओगिण्हति, जं च साहरति, जं च आसगंसि पक्खिवति।
२६३. जहाँ गृहस्थ भोजन करते हों वहाँ लाया हुआ उपहृत-भोजन तीन प्रकार का होता है-(१) - फलिकोपहत-थाली आदि में रखा हुआ भोजन। (२) शुद्धोपहृत-लेपरहित सूखा भोजन। जैसे भुने हुए म चने आदि। (३) संसृष्टोपहत-अनेक वस्तु मिश्रित किन्तु अनुच्छिष्ट भोजन। जैसे-दाल-चावल।
२६४. अवगृहीत-(भोजन ग्रहण के सम्बन्ध में विशेष अभिग्रहयुक्त) आहार तीन प्रकार का म होता है-(१) गृहस्थ द्वारा परोसने के लिए हाथ में उठाया हुआ। (२) एक बर्तन से दूसरे बर्तन में रखा
जाता भोजन। (३) परोसने से बचा हुआ और पुनः पात्र में डाला हुआ। (ये दोनों सूत्र अभिग्रहधारी मुनि म की अपेक्षा से हैं)
263. The food brought for serving (upahrit) where householders eat is of three kinds—(1) falikopahrit-food placed in plates and other utensils, (2) shuddhopahrit-dry food without any curry such as roasted gram, and (3) samsrishtopahrit-food with mixed ingredients but not leftovers, for example rice mixed with curry.
264. Avagraheet food (food to be taken with some specific resolution about acceptance) is of three kinds—(1) food taken in hand by a householder for serving, (2) food being transferred from one vessel to another, and (3) unserved food replaced in the serving pot. (These two aphorisms are meant for an ascetic with abhigraha or special resolve) अवमोदरिका-पद AVAMODARIKA-PAD (SEGMENT OF CURTAILMENT)
२६५. तिविधा ओमोदरिया पण्णत्ता, तं जहा-उवगरणोमोदरिया भत्तपाणोमोदरिया, भावोमोदरिया।
२६६. उवगरणोमोदरिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगे वत्थे, एगे पाते, चियत्तोवहिसाइजणया। . २६५. अवमोदरिका--(आवश्यकता से कम भक्त-पात्रादि ग्रहण करना ऊणोदरी) तीन प्रकार की है(१) उपकरण-अवमोदरिका-उपकरणों को कम करना। (२) भक्त-पान-अवमोदरिका-खान-पान की वस्तुओं को कम लेना। (३) भाव-अवमोदरिका-राग-द्वेषादि दुर्भावों को मंद करना।
२६६. उपकरण-अवमोदरिका तीन प्रकार की होती है-(१) एक वस्त्र रखना। (२) एक पात्र रखना। (३) साधना में आगम-सम्मत आवश्यक उपकरण रखना।
तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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