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Elaboration-To experience or suffer the fruits of karma is called or vedana. This is of two kinds-aabhyupagamiki and aupakramiki. Abhyupagam means 'to accept of one's own volition' or volitive acceptance. For example, austerities are not caused by fruition of some karma but are formally accepted of one's own volition. The sufferance during observation of austerities is aabhyupagamiki vedan. Upakram here means fruition of karma in natural course. The sufferance due to ailments in the body is aupakramiki vedan. Both these sufferances cause nirjara (shedding of karmas).
vedan
आत्म-निर्याण - पद ( शरीर त्याग की सूक्ष्म गति) ATMA-NIRYAN-PAD (SEGMENT OF DEPARTURE OF SOUL)
३९८. दोहिं ठाणेहिं आया सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाति, तं जहा - देसेणवि आया सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आया सरीरगं फुसित्ता णं णिज्जाति । ३९९ एवं फुरित्ताणं । ४००. एवं फुडित्ताणं । ४०१. एवं संवट्टइत्ताणं । ४०२. एवं णिवट्टइत्ता णं णिज्जाति ।
विवेचन - मृत्यु के समय जब आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करता है तब 5 उसकी प्रस्थानगति दो प्रकार की होती है, एक इलिकागति-जैसे लट या कीड़ा अगले स्थान पर पाँव जाकर फिर पिछला स्थान छोड़ता है। इसी प्रकार शरीर छोड़ते समय आत्मा के कुछ प्रदेश पहले अगले स्थान का स्पर्श करते हैं, फिर आत्मा के अन्य प्रदेश पूर्व शरीर का त्यागकर सर्वांग रूप में उस शरीर में पहुँचते हैं। दूसरी कन्दुकगति - गेंद की गति, बन्दूक की गोली या धनुष में छूटे तीर की तरह सभी प्रदेश
द्वितीय स्थान
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३९८. दो स्थानों से आत्मा शरीर का स्पर्श कर बाहर निकलती है- देश से, कुछ प्रदेशों से या शरीर के किसी भाग से आत्मा शरीर का स्पर्श कर बाहर निकलती है और सर्व प्रदेशों से आत्मा शरीर फ का स्पर्श कर बाहर निकलती है । ३९९. इसी प्रकार आत्मा शरीर को स्फुरित ( स्पन्दित) कर बाहर निकलती है । ४००. इसी प्रकार स्फुटित ( शरीर को फोड़ कर बाहर निकलती है । ४०१. इसी प्रकार संवर्तित (संकुचित) कर बाहर निकलती है । ४०२ और शरीर को निर्वर्तित ( जीव- प्रदेशों से अलग) कर बाहर निकलती है।
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398. Soul departs after touching the body in two ways-by desh (partially): soul departs the body by touching some part of the body with F some soul-space-points and by sarva-pradesh (fully ) : soul departs the F body by touching whole body with all its soul-space-points. 399. In the 5 same way soul departs by vibrating (sfurit) the body. 400. In the same way soul departs by bursting (sfutit ) the body. 401. In the same way soul f departs by squeezing (samvartit) the body. 402. In the same way soul 5 departs by separating the body from soul-space-points (nirvartit).
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