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३४९. पुक्खरवरदीवडपच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता। तहेव णाणत्तं-कूडसामली चेव, महापउमरुक्खे चेव। देवा-गरुले चेव वेणुदेवे, पुंडरीए चेव।
३४९. अर्धपष्करवरद्वीप के पश्चिमार्ध में मन्दर पर्वत के दक्षिण में भरत और उत्तर में ऐरवत ये दो क्षेत्र हैं। __[इस प्रकार जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और आधा पुष्करवरद्वीप-यह ४५ लाख योजन विस्तार ॐ वाला मनुष्य क्षेत्र है। इसमें ५ मेरु, ३० वर्षधर, ५ देवकुरु, ५ उत्तरकुरु, ५ हैमवत, ५ हैरण्यवत, म ५ हरिवर्ष, ५ रम्यक्वर्ष, ५ भरत, ५ हैरवत और ५ महाविदेह हैं। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारे सब के + इसी मनुष्य क्षेत्र में हैं।]
349. In the western half of Ardhapushkaravar continent there are two areas (land masses) north and south of the Mandar mountain-Bharat (in the south) and Airavat (in the north). Here the two great trees are Kootshalmali and Mahapadma. On Kootshalmali trec lives Venudev, a
god belonging to the Garud Kumar class and on Mahapadma tree lives 卐 Pundareek Dev.
This total area of human habitation comprising of Jambu, Dhatakikhand and Ardhapushkarvar continents is 45 hundred thousand 4 Yojans, one Yojan being eight miles. This total area contains 5 Meru
mountains, 30 Varshadhar mountains, 5 each of Dev Kuru, Uttar Kuru, Haimavat, Hairanyavat, Harivarsh, Ramyakvarsh, Bharat, Airavat and Mahavideh areas. The suns, moons, planets, constellations and stars
also belong to this area only.) म ३५०. पुक्खरवरदीवड्ढे णं दीवे दो भरहाइं, दो एरवयाइं जाव दो मंदरा, दो मंदरचूलियाओ। ॐ ३५०. अर्धपुष्करवरद्वीप में भरत, ऐरवत से लेकर यावत् मन्दर और मन्दरचूलिका तक सभी फ़ दो-दो हैं।
350. In the western half of Ardhapushkaravar continent there are two 4. each of Bharat, Airavat... and so on up to... Mandar and Mandar Chulika.
३५१. पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता। ३५२. सव्वेसिपि णं दीवसमुद्दाणं वेदियाओ दो गाउयाई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ताओ। ॐ ३५१. पुष्करवरद्वीप की वेदिका दो कोश ऊँची है। ३५२. सभी द्वीपों और समुद्रों की वेदिकाएँ + दो-दो कोश ऊँची हैं।
351. The vedika (plateau) of Ardhapushkarvar continent is two Kosh 卐 (four miles) high. 352. The vedikas of all continents and seas are two
Kosh (four miles) high each.
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Sthaananga Sutra (1)
| स्थानांगसूत्र (१)
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