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55555555555555555555555555555555 ॐ तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव। ६९. दोहिं ठाणेहिं आया केवलमाभिणिबोहियणाणं
उप्पाडेजा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव। ७०. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं सुयणाणं के उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव। ७१. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं ओहिणाणं
उप्पाडेजा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव। ७२. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं मणपज्जवणाणं ॐ उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव। ७३. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव।
६३. गुरुजनों आदि के मुख से शास्त्र वचन सुनकर तथा उसे भली प्रकार ग्रहण (धारण) करके इन दो स्थानों (कारणों) से आत्मा केवलि-भाषित धर्म को प्राप्त करता है (१)। ६४. इसी प्रकार सुनकर 卐 और ग्रहण कर विशुद्धबोधि को प्राप्त करता है (२)। ६५. सुनने और ग्रहण करने से आत्मा मुण्डित
होकर और घर का त्यागकर सम्पूर्ण अनगारिता को पाता है (३)। ६६. सुनकर और ग्रहण कर आत्मा
सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यवास को प्राप्त करता है (४)। ६७. सुनकर और ग्रहण कर आत्मा सम्पूर्ण संयम से युक्त ऊ होता है (५)। ६८. सुनकर और ग्रहण कर आत्मा सम्पूर्ण संवर से संवृत्त होता है (६)। ६९. म सुनकर और ग्रहण कर आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक (मतिज्ञान) ज्ञान को प्राप्त करता है (७)। ७०.
सुनकर और ग्रहण कर आत्मा विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त करता है (८)। ७१. सुनकर और ग्रहण कर ॐ आत्मा विशुद्ध अवधिज्ञान प्राप्त करता है (९)। ७२. सुनकर और ग्रहण कर आत्मा विशुद्ध मनः + पर्यवज्ञान को प्राप्त करता है (१०)। ७३. धर्म को सुनकर एवं ग्रहण करके ही आत्मा विशुद्ध
केवलज्ञान को प्राप्त करता है (११)। f. 63. By following two sthaans a soul is able to listen to the Sermon of
the Omniscient (1), they are-listening to the scriptural discourse of preceptors and sincerely accepting and following the same. In the same way by listening to the scriptural discourse of preceptors and sincerely
accepting and following the same a mundane soul is able to41 64. experience pious enlightenment (right knowledge) (2). 65. tonsure his 5 head and renounce his household to become a homeless ascetic (anagar)
(3). 66. observe complete celibacy (4). 67. embrace complete ascetic-. discipline (in the form of five great vows) (5). 68. accomplish complete samvar (stopping of inflow of karmas) (6). 6. acquire pure abhinibodhikjnana or mati-jnana (sensory knowledge or to know the apparent form of things appearing before the soul by means of five sense organs and the mind) (7). 70. acquire pure shrut-jnana (scriptural knowledge) (8). 71. acquire pure avadhi-jnana (extrasensory perception of the physical dimension; something akin to clairvoyance) (9). 72. acquire pure manahparyav-jnana (extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other beings, something akin to telepathy) (10). 73. acquire pure keval-jnana (omniscience) (11).
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स्थानांगसूत्र (१)
(58)
Sthaananga Sutra (1)
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