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5 पाउब्भूया,
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तं नो खलु अहं ते देवे जाणामि कयरातो कप्पातो वा सग्गातो वा विमाणातो वा कस्स वा अत्थस्स अट्ठाए इहं हव्यमागता ?' तं गच्छामि णं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि जाव पज्जुवासामि, इमाई च णं एयारूवाई वागरणाई पुच्छिस्सामि त्ति कट्टु एवं संपेहेति, संपेहित्ता उट्ठाए उट्ठेति, जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव पज्जुवासति ।
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[ २ ] तत्पश्चात् ध्यानान्तरिका (एक ध्यान की समाप्ति होने पर दूसरा ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व बीच के समय) में प्रवृत्त होते हुए भगवान गौतम के मन में इस रूप का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ'निश्चय ही महर्द्धिक यावत् महानुभाग ( महाभाग्यशाली) दो देव, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के निकट प्रकट हुए; किन्तु मैं तो उन देवों को नहीं जानता कि वे कौन से कल्प से या स्वर्ग से, कौन से विमान से और किस प्रयोजन से शीघ्र यहाँ आए हैं ? अतः मैं भगवान महावीर के पास जाऊँ और 5 वन्दन - नमस्कार करूँ; पर्युपासना करूँ और ऐसा करके मैं इन और इस प्रकार के उन - ( मेरे मन में 5 पहले उत्पन्न ) प्रश्नों को पूछूं । यों गौतम स्वामी ने विचार किया और अपने स्थान से उठे । फिर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आए, उनकी पर्युपासना करने लगे ।
[2] After concluding one course of meditation and before commencing 5 the next (dhyanantarika), this thought came to his mind - Indeed two gods, with great opulence... and so on up to... fortune have appeared before Shraman Bhagavan Mahavir. However, I do not know these gods, nor do I know from which Kalp or celestial vehicle they rushed here and 卐 for what purpose? Therefore I should approach Bhagavan Mahavir, offer him homage and obeisance, duly worship him and put forth my said queries.' With these thoughts Gautam Swami got up from his seat, came 5 where Shraman Bhagavan Mahavir was seated... and so on up to... 5 commenced worship.
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[प्र. ३ ] 'गोयमा !' इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-से नूणं तव गोयमा झाणंतरिया वट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए। से नूणं गोयमा अट्टे समट्ठे ?
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[उ. ] हंता, अत्थि ।
तं गच्छाहि णं गोयमा ! एए चेव देवा इमाई एयारूवाइं वागरणाई वागरेर्हिति ।
भगवती सूत्र ( २ )
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[प्र. ३] इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने गौतम आदि अनगारों को सम्बोधित करके
भगवान गौतम से इस प्रकार कहा- 'गौतम ! ध्यानान्तरिका में वर्तते हुए तुम्हारे मन में इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ कि मैं देवों सम्बन्धी तथ्य जानने के लिए श्रमण भगवान महावीर की सेवा में जाकर उन्हें वन्दन - नमस्कार करूँ, उनकी पर्युपासना करूँ, उसके पश्चात् पूर्वोक्त प्रश्न पूछें, यावत् इसी 5 कारण से हाँ मैं हूँ वहाँ तुम मेरे पास शीघ्र आए हो । हे गौतम ! यही बात है न ?”
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[ उ. ] 'हाँ, भगवन् ! यह बात ऐसी ही है।'
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Bhagavati Sutra (2)
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