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५. [ प्र. ] से नूणं भंते ! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहा - नेरइयाउयं वा जाव देवाउयं वा ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहा -नेरइयाउयं वा, तिरि - मणु - देवाउयं वा । नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं जहा - रयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा जाव आहेसत्तमापुढविनेरइयाउयं वा । तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ, तं जहाएगिंदियतिरिक्खजोणियाउयं वा, भेओ सव्वो भाणियव्वो ।
मस्साउयं दुविहं । देवाउयं चउविहं ।
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सेवं भंते ! सेवं भंते! ति. ।
॥ पंचम सए : तइओ उद्देसओ समत्तो ॥
५. [ प्र.] भगवन् ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होता है, क्या वह जीव, उस योनि सम्बन्धी आयुष्य बाँधता है ? जैसे कि जो जीव नरकयोनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, क्या वह नरकयोनि का आयुष्य बाँधता है, यावत् देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव क्या देवयोनि का आयुष्य बाँधता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, वह जीव उस योनि सम्बन्धी आयुष्य को बाँधता है। जैसे कि नरकयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव नरकयोनि का आयुष्य बाँधता है, तिर्यञ्चयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य बांधता है, मनुष्ययोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव मनुष्ययोनि का आयुष्य बाँधता है यावत् देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव देवयोनि का आयुष्य बाँधता है।
जो जीव नरक का आयुष्य बाँधता है, वह सात प्रकार की नरकभूमि में से किसी एक प्रकार की नरकभूमि सम्बन्धी आयुष्य बाँधता है। यथा-रत्नप्रभा ( प्रथम नरक) पृथ्वी का आयुष्य अथवा यावत् अधः सप्तमपृथ्वी (सप्तम नरक) का आयुष्य बाँधता है। जो जीव तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य बाँधता है, वह पाँच प्रकार के तिर्यञ्चों में से किसी एक प्रकार का तिर्यञ्च सम्बन्धी आयुष्य बाँधता है । यथा-एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य इत्यादि । तिर्यञ्च के सभी भेद - विशेष विस्तृत रूप से यहाँ कहने चाहिए।
जो जीव मनुष्य-सम्बन्धी आयुष्य बाँधता है, वह दो प्रकार के मनुष्यों में से किसी एक प्रकार के मनुष्य - सम्बन्धी आयुष्य को बाँधता है, (यथा- सम्मूर्च्छिम मनुष्य का, अथवा गर्भज मनुष्य का ।) जो जीव देव-सम्बन्धी आयुष्य बाँधता है, तो वह चार प्रकार के देवों में से किसी एक प्रकार के देव का आयष्य बाँधता है।
'हे
भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है;' यों कहकर यावत् विचरते हैं। 5. [Q.] Bhante ! Does a soul born in a particular genus (yoni) acquire the bondage of life-span (ayushya) for that particular genus. For example, does the soul destined to the infernal world acquire the bondage of life-span ( ayushya) of the infernal genus... and so on up to ...
Fifth Shatak: Third Lesson
पंचम शतक तृतीय उद्देशक
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