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5 १८. [प्र.] भगवन् ! जीवों के कल्याणकर्म, कल्याणफलविपाक से संयुक्त कैसे होते हैं ?
[उ.] कालोदायिन् ! जैसे कोई पुरुष मनोज्ञ (सुन्दर) स्थाली में पकाने से शुद्ध पका हुआ और 卐 अठारह प्रकार के दाल, शाक आदि व्यंजनों से युक्त औषधमिश्रित भोजन करता है, तो वह भोजन के
प्रारम्भ में अच्छा न लगे, परन्तु बाद में परिणत होता-होता जब वह सुरूपत्व रूप में, सुवर्णरूप में यावत्
सुख (या शुभ) रूप में बार-बार परिणत होता है, तब वह दुःखरूप में परिणत नहीं होता; इसी प्रकार म हे कालोदायिन् ! जीवों के लिए प्राणातिपातविरमण यावत् परिग्रह-विरमण, क्रोधविवेक (क्रोधत्याग) के
यावत् मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक प्रारम्भ में अच्छा नहीं लगता, किन्तु उसके पश्चात् उसका परिणमन ॐ होते-होते सुरूपत्व रूप में, सुवर्णरूप में उसका परिणाम यावत् सुखरूप होता है, दुःखरूप नहीं होता। इसी प्रकार हे कालोदायिन् ! जीवों के कल्याण (पुण्य) कर्म कल्याणफलविपाक-संयुक्त होते हैं।
18. (Q.) Bhante ! How do jivas (souls) acquire beatific or meritorious karmas entailing beatific consequences on fruition ? __[Ans.] Kalodayi ! Take for example a person who takes meals 55 including eighteen varieties of dishes of curries, vegetables and other
preparations properly cooked in good utensils and mixed with nutrient $ things (like herbs). To begin with he may not find it good and tasty but 4
with passage of time it transforms and turns into good, gold-like (pure)... and so on up to... increasingly pleasant; it never becomes harmful. Kalodayi ! In the same way living beings find abstaining from indulging in killing of beings (pranatipat)... and so on up to... fondness for possessions and having prudence against anger... and so on up to... mithyadarshan shalya (the thorn of wrong belief or unrighteousness) to be unpleasant to begin with, but later, that unpleasantness transforms into good, gold-like (pure)... and so on up to... increasingly pleasant experience; it never becomes harmful. Kalodayi ! This way jivas (souls) acquire beatific or meritorious karmas entailing beatific consequences on fruition.
विवेचन : निष्कर्ष-जिस प्रकार सर्वथा सुसंस्कृत एवं शुद्ध रीति से पकाया हुआ स्वादिष्ट विषमिश्रित भोजन फ खाते समय बड़ा रुचिकर लगता है, किन्तु जब उसका परिणमन होता है, तब वह अत्यन्त दुःखद और + प्राणविनाशकारक होता है। इसी प्रकार प्राणातिपात आदि पापकर्म करते समय जीव को अच्छे लगते हैं, किन्तु
उनका फल भोगते समय वे बड़े दुःखदायी होते हैं। जिस प्रकार औषधयुक्त भोजन करना प्रारम्भ में कष्टकर ॐ लगता है, किन्तु उसका परिणाम सुखकर और आरोग्यकर होता है। इसी प्रकार प्राणातिपातादि से विरति 5 कष्टकर एवं अरुचिकर लगती है, किन्तु उसका परिणाम अतीव हितकर और सुखकर होता है। (वृत्ति, पत्रांक ३२६)
Elaboration Conclusion-Properly and hygienically cooked tasty but toxic food is enjoyable when eaten but on digestion when it takes its
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| भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2)
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