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4 10. In the battle King Kunik hurt, wounded and killed great warriors 4 of the Nine Malla chiefs and nine Lichchhavi chiefs, who were the heighteen kings of republics of Kashi and Kaushal countries. The flags
and banners bearing their ensigns and colours were brought down. He 5 put the fear of life in their minds and made them flee in all the ten 4 directions.
विवेचन : महाशिलाकण्टक संग्राम का कारण- 'औपपातिक' एवं 'निरयावलिका' आदि सूत्रों में इस युद्ध का ॐ कारण इस प्रकार बताया है-चम्पानगरी में कूणिक राजा राज्य करता था। हल्ल और विहल्ल उसके दो छोटे 9 भाई थे। दोनों को उनके पिता श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में उनके हिस्से का एक सेचनक गन्धहस्ती और
अठारहलड़ा वंकचूड़ हार दिया था। दोनों भाई प्रतिदिन सेचनक गन्धहस्ती पर बैठकर गंगातट पर जलक्रीड़ा
और मनोरंजन करते थे। उनके इस आमोद-प्रमोद को देखकर कूणिक की रानी पद्मावती को अत्यन्त ईर्ष्या फ़ हुई। उसने कूणिक राजा को हल्ल-विहल्लकुमार से सेचनक हाथी ले लेने के लिए प्रेरित किया। कूणिक ने
हल्ल-विहल्लकुमार से सेचनक हाथी माँगा। तब उन्होंने कहा- यदि आप हाथी लेना चाहते हैं तो हमारे हिस्से
का राज्य दे दीजिए। किन्तु कूणिक उनकी न्यायसंगत बात की परवाह न करके बार-बार हाथी माँगने लगा। ॐ इस पर दोनों भाई कूणिक के भय से भागकर अपने हाथी और अन्तःपुर सहित वैशाली नगरी में अपने नाना ॥ म चेटक राजा की शरण में पहुँचे। कूणिक ने चेटक के पास दूत भेजकर हल्ल-विहल्लकुमार को सौंप देने का
सन्देश भेजा। किन्तु चेटक राजा ने हल्ल-विहल्ल को नहीं सौंपा। पुनः कूणिक ने दूत के साथ सन्देश भेजा कि
यदि आप दोनों कुमारों को नहीं सौंपते हैं तो युद्ध के लिए तैयार हो जाइये। चेटक राजा ने न्यायसंगत बात 卐 कही, उस पर कूणिक ने कोई विचार नहीं किया। सीधा ही युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया। यह था
महाशिलाकण्टक युद्ध का कारण। + इधर जब चेटक राजा ने भी देखा कि कूणिक युद्ध किये बिना नहीं मानेगा। तब उन्होंने भी शरणागत की
रक्षा एवं न्याय के लिए अठारह गणराज्यों के अधिपति राजाओं को अपनी-अपनी सेना सहित बुलाया। वे सब
ससैन्य एकत्रित हुए। दोनों ओर की सेनाएँ युद्धभूमि में आ डटीं। घोर संग्राम शुरू हुजा। चेटक राजा का ऐसा 9 नियम था कि वे दिन में एक ही बार एक ही बाण छोड़ते, और उनका छोड़ा हुआ बाण कभी निष्फल नहीं जाता + था। पहले दिन कूणिक का भाई कालकुमार सेनापति बनकर युद्ध करने लगा, किन्तु चेटक राजा के एक ही
बाण से वह मारा गया। इससे कूणिक की सेना भाग गई। इस प्रकार दस दिन में चेटक राजा ने कालकुमार ॐ आदि दसों भाइयों को मार गिराया। ग्यारहवें दिन कूणिक की बारी थी। कूणिक ने सोचा- 'मैं भी दसों भाइयों क की तरह चेटक राजा के आगे टिक न सकूँगा। मुझे भी वे एक ही बाण में मार डालेंगे।' अतः उसने तीन दिन
तक युद्ध स्थगित रखकर चेटक राजा को जीतने के लिए अष्टम तप (तेला) करके देवाराधना की। अपने पूर्वभव ॐ के मित्र देवों का स्मरण किया, जिससे शक्रेन्द्र और चमरेन्द्र दोनों उसकी सहायता के लिए आये। शक्रेन्द्र ने
कूणिक से कहा-चेटक राजा परम श्रावक है, इसलिए उसे मैं मारूँगा नहीं, किन्तु तेरी रक्षा करूँगा। अतः शक्रेन्द्र ने कूणिक की रक्षा करने के लिए वज्र सरीखे अभेद्य कवच की विकुर्वणा की और चमरेन्द्र ने
महाशिलाकण्टक और रथमूसल, इन दो संग्रामों की विकुर्वणा की। इन दोनों इन्द्रों की सहायता के कारण ॐ कूणिक की शक्ति बढ़ गयी। वास्तव में इन्द्रों की सहायता से ही महाशिलाकण्टक संग्राम में कूणिक की विजय
हुई, अन्यथा विजय में सन्देह था।
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सप्तम शतक : नवम उदेशक
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Seventh Shatak: Ninth Lesson
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