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९. तए णं से कूणिए नरिंदे हारोत्थयसुकयरतियवच्छे जहा उववातिए जाव सेयवरचामराहिं उद्ध्रुव्वमाणीहिं उदूधुव्वामाणीहिं हय-गय-रह-पवरजोहकलिताए चातुरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे महया भडचडगरवंदपरिक्खित्ते जेणेव महासिलाकंटए संगामे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता महासिलकंटयं संगामं ओयाए, पुरओ य से सक्के देविंदे देवराया एगं महं अभेज्जकवयं वइरपडिरूवगं विउब्वित्ताणं चिट्ठति । एवं खलु दो इंदा संगामं संगामेंति, जहा- देविंदे य मणुइंदे य, एगहित्था वि पभू कूणिए राया पराजिणित्तए ।
९. इसके बाद हारों से आच्छादित वक्षःस्थल वाला कूणिक जनमन में रति- प्रीति उत्पन्न करता हुआ औपपातिकसूत्र में कहे अनुसार यावत् श्वेत चामरों से बार-बार बिजाता हुआ, अश्व, हस्ती, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत्त महान् सुभटों के विशाल समूह से व्याप्त कूणिक राजा, जहाँ महाशिलाकण्टक संग्राम ( होने जा रहा था, वहाँ आया । वहाँ आकर वह महाशिलाकण्टक संग्राम में (स्वयं) उतरा। उसके आगे देवराज देवेन्द्र शक्र वज्र के समान अभेद्य एक महान् कवच की विकुर्वणा करके खड़ा हुआ। इस प्रकार ( उस युद्ध क्षेत्र में मानो) दो इन्द्र संग्राम करने लगे; जैसे कि- एक देवेन्द्र ( शक्र) और दूसरा मनुजेन्द्र ( कूणिक राजा ) । अब कूणिक राजा केवल एक हाथी से भी अथवा (एक उपकरण विशेष जिसके द्वारा कंकड़ आदि फेंके जाते हैं) (शत्रुपक्ष की सेना को ) पराजित करने में समर्थ हो गया।
9. Then King Kunik, his chest covered with necklaces, proceeded towards the battle ground. He evoked humble and loving curiosity in masses. As mentioned in Aupapatik Sutra, he was continuously fanned with whisks and was surrounded by his four pronged army comprising of cavalry, elephant brigade, chariot brigade and infantry. Accompanied by a large group of great warriors, he arrived at the battle ground and joined the Mahashilakantak battle. Ahead of him stood Shakrendra, the king of gods, after creating a great impenetrable armour. This way it appeared as if two Indras (kings), king of gods (Shakra) and king of humans (Kunik), had joined the battle. Now King Kunik became capable of defeating the opposing army just with one elephant (or a special tanklike vehicle that launched a variety of projectiles including stones).
१०. तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटकं संगामं संगामेमाणे नव मल्लई, नव लेच्छइ, कासी कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो हयमहियपवरवीरघातियविवडियचिंधधय-पडागे किच्छप्पाणगते दिसो दिसिं पडिसेहेत्था ।
१०. तत्पश्चात् उस कूणिक राजा ने महाशिलाकण्टक संग्राम करते हुए, नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी; जो काशी और कौशल देश के अठारह गण राजा थे, उनके प्रवर वीर योद्धाओं को नष्ट किया, घायल किया और मार डाला। उनकी चिह्नांकित ध्वजा - पताकाएँ गिरा दीं। उन वीरों के प्राण संकट में पड़ गये, अतः उन्हें युद्धस्थल से दसों दिशाओं में भगा दिया ( तितर-बितर कर दिया ) ।
भगवती सूत्र (२)
Bhagavati Sutra (2)
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