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[ २ ] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव कज्जति ?
[उ.] गोयमा ! अविरतिं पडुच्च । से तेणट्टेणं जाव कज्जति ।
८. [ प्र. १ ] भगवन् क्या वास्तव में, हाथी और कुन्थुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! हाथी और कुन्थुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है।
[ २ ] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि हाथी और कुंथुए के यावत् क्रिया समान लगती है ?
[उ. ] गौतम ! अविरति की अपेक्षा से हाथी और कुन्थुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है।
8. [Q. 1] Bhante ! Are soul of an elephant and that of an insect equally liable of involvement in apratyakhyaniki kriya (activity of nonrenunciation) ?
[Ans.] Yes, Gautam! Soul of an elephant and that of an insect are equally liable of involvement in apratyakhyaniki kriya.
[2] [Q.] Bhante ! Why do you say that soul of an elephant and that of an insect are equally liable of involvement in apratyakhyaniki kriya (activity of non-renunciation) ?
[Ans.] Gautam ! In context of avirati (non-restraint ) soul of an elephant and that of an insect are equally liable of involvement in apratyakhyaniki kriya. In other words, as they both are unrestrained they both are liable of such involvement.
5 आधाकर्म का फल CONSEQUENCE OF ADHAAKARMA
९. [प्र.] आहाकम्मं णं भंते ! भुंजमाणे किं बंधति ? किं पकरेति ? किं चिणाति ? किं 5 उवचिणाति ?
[उ. ] एवं जहा पढमे सए नवमे उद्देसए (सू. २६) तहा भाणियव्वं जाव सासते पंडिते, पंडितत्तं असासयं ।
सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ।
| सत्तम सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो ॥
९. [ प्र. १ ] भगवन् ! आधाकर्म (साधु के निमित्त बने आहारादि ) का उपयोग करने वाला साधु क्या बाँधता है ? क्या करता है ? किसका चय करता है और किसका उपचय करता है ?
सप्तम शतक अष्टम उद्देशक
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Seventh Shatak: Eighth Lesson
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