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| चित्र परिचय-१२
Illustration No. 12
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दस संज्ञाएँ वेदनीय तथा मोहनीय कर्म के उदय से भोजन आदि की इच्छा होना 'संज्ञा' है।
१. आहार संज्ञा-भोजन की प्रबल इच्छा। जिसको आहार संज्ञा प्रबल होती है, उसे दिन-रात खाने की इच्छा बनी रहती है।
२. भय संज्ञा-किसी भी कल्पित कारण या आशंका से भयभीत होना-जैसे अपनी ही छाया को भूत समझकर डरना। ३. मैथुन संज्ञा-अपने से विपरीत लिंग के प्रति कामवासना। ४. परिग्रह संज्ञा-मन में धन आदि का संग्रह करने की आसक्ति होना, जैसे चूहे में संग्रह की वृत्ति होती है। ५. क्रोध संज्ञा-मन के विपरीत काम होने पर क्रोध आदि का उदय होना जैसे साँप को छेड़ने पर फुकारता है। ६. मान संज्ञा-पत्थर के खम्भे की तरह मन में स्तब्धता (अकड़) रूप भान का उदय होना। ७. माया संज्ञा-झूठ, कपट आदि द्वारा दूसरों को ठगना जैसे बगुला वृत्ति। ८. लोभ संज्ञा-धन आदि की प्राप्ति की तीव्र लालसा होना। इसी लालसा वश व्यक्ति भ्रष्ट आचरण करता है। ९. ओघ संज्ञा-बिना विशेष उपयोग के धुन ही धुन में चलते रहना। १०. लोक संज्ञा-लोक रूढ़ि के वश देखा-देखी प्रवृत्ति करना, जैसे देखा-देखी मिथ्यात्वी देवों की पूजा आदि करना।
-शतक ७. उ. ८, सूत्र ५ TEN INCLINATIONS Natural desires triggered by fruition of Vedaniya and Mohaniya karmas are called sanjna (inclinations)
(1) Inclination for food (ahaar sanjna)-a person with intensity of this tends to eat all the time.
(2) Inclination of fear (bhaya sanjna)—to be afraid of some imaginary thing, like ___one's own shadow, believing it to be a ghost.
(3) Inclination of sex (maithun sanjna)-lust for persons of opposite sex.
(4) Inclination of possession (parigraha sanjna)-craving for accumulating wealth and other possessions, like a mouse.
(5) Inclination of anger (krodh sanjna)-rise of anger when things go against one's wishes, as a snake hisses on disturbing.
(6) Inclination of conceit (maan sanjna)-rise of dogmatic ego, like an unyielding stone pillar.
(7) Inclination of deceit (maaya sanjna)-two cheat others with lies and deceit, like a heron.
(8) Inclination of greed (lobh sanjna)-craving for acquiring wealth and other । things, like a corrupt person takes bribe.
(9) Inclination of stupor (ogh sanjna)-to move about purposeless or absentmindedly.
(10) Inclination for social customs (lok sanjna)-to blindly follow social customs, like worship of pagan deities.
-Shatak-7. lesson-8, Sutra-5
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