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एवं हेडिल्लएहिं अहिं न जाणइ न पासइ, उवरिल्लएहिं चउहिं जाणइ पासइ। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥छट्ठ सए : नवमो उद्देसो समत्तो ॥ [२] (२) इसी तरह अविशुद्ध लेश्या वाला देव अनुपयुक्त (असमवहत) आत्मा से, विशुद्ध लेश्या वाले देव को, देवी को या अन्यतर को जानता और देखता है ? (३) अविशुद्ध लेश्या वाला देव उपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? (४) अविशुद्ध लेश्या 卐 वाला देव उपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? (५) अविशुद्ध लेश्या वाला देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? (६) अविशुद्ध लेश्या वाला देव, उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? (उक्त छह विकल्पों वाले देव मिथ्यात्वी होने से विभंग ज्ञानी होते हैं।) (७) विशुद्ध लेश्या वाले देव, अनुपयुक्त आत्मा द्वारा, अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी या . अन्यतर को जानता-देखता है ? (८) विशुद्ध लेश्या वाला देव, अनुपयुक्त आत्मा द्वारा, विशुद्ध लेश्या
वाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? [आठों प्रश्नों का उत्तर] गौतम ! यह अर्थ समर्थ फ़ नहीं है। (अर्थात् नहीं जानता-देखता।) [ [प्र. ९ ] भगवन् ! विशुद्ध लेश्या वाला देव क्या उपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी म या अन्यतर को जानता-देखता है? 3 [उ. ] हाँ गौतम ! ऐसा देव जानता और देखता है।
[प्र. १० ] इसी प्रकार क्या विशुद्ध लेश्या वाला देव, उपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्या वाले देव, ॐ देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
__[उ. ] हाँ गौतम ! वह जानता-देखता है। फ़ [प्र. ११ ] विशुद्ध लेश्या वाला देव, उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से, अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
[उ. ] हाँ गौतम ! वह जानता और देखता है। ___ [प्र. १२ ] विशुद्ध लेश्या वाला देव, उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से, विशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
[उ.] किन्तु पीछे (ऊपर के) जो चार भंग कहे गये हैं, उन चार भंगों वाले देव, जानते और
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+ देखते हैं।
___यों पहले (निचले) जो आठ भंग कहे गये हैं, उन आठ भंगों वाले देव नहीं जानते-देखते।
_ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर श्री गौतम स्वामी फ़ यावत् विचरण करने लगे। (इन चार विकल्पों वाले देव सम्यग् दृष्टि होने के कारण जानते-देखते हैं।)
| भगवती सूत्र (२)
(312)
Bhagavati Sutra (2)
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