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point is the subject of arithmetic. After this comes metaphoric time
(expressed through metaphors not numerals or arithmetic).
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विवेचन : गणनीय काल- मुहूर्त्त से लेकर शीर्ष - प्रहेलिकापर्यन्त गणितयोग्य काल है। काल का सूक्ष्मतम भाग
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समय होता है। असंख्यात समय की एक 'आवलिका' होती है। २५६ आवलिका का एक क्षुल्लकभवग्रहण होता 5 है। १७ से कुछ अधिक क्षुल्लकभवग्रहण (४४४६ ३७७३ २४५८ आवलिका) का एक उच्छ्वास- निःश्वासकाल होता है।
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मानसिक संक्लेशरहित व्यक्ति के श्वास- निश्वास की संख्या सम व स्थिर रहती है। अतः वही प्रमाण माना गया है। एक पूर्ण उच्छ्वास- निःश्वास का एक 'प्राण' इसके आगे की संख्या स्पष्ट है। सबसे अन्तिम गणनीय काल 5 'शीर्षप्रहेलिका' है, और जो १९४ अंकों की संख्या है। (काल का विस्तृत वर्णन अनुयोगद्वार, भाग १, पृष्ठ २८९, तथा भाग २, काल प्रमाण, पृष्ठ १५८ पर किया जा चुका है।)
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Elaboration-Countable or measurable time is expressed by various aforesaid units from Muhurt to Sheershaprahelika. The smallest indivisible unit of time is called one Samaya; it is something even 15 beyond nanosecond Innumerable Samayas make one Avalika. 2565 5 Avalikas make one Kshullak-bhava-grahan. Slightly more than 175 Kshullak-bhava grahan (444623458 Avalika) make one UchchhavaasNihshvaas. The rhythm of respiration of a healthy and stress free person is uniform and that is why it is taken as a standard unit. Time taken in one complete inhalation and exhalation is called Praan. The following units are exact and as aforesaid. The last countable unit of time is Sheershaprahelika (a number having 194 digits). (for more details refer to 5 Illustrated Anuyogadvar Sutra, part 1, p. 289 and part 2, p. 158)
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औपमिक काल का स्वरूप METAPHORIC UNITS TIME
६. [ प्र. ] से किं तं ओवमिए ?
[उ.] ओमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पलिओवमे य, सागरोवमे य ।
६. [ प्र. ] भगवन् ! वह औपमिक (काल) क्या है ?
[उ. ] गौतम ! औपमिक काल दो प्रकार है । यथा- पल्योपम और सागरोपम ।
6. [Q.] Bhante ! What is this metaphoric unit of time ?
[Ans.] Gautam ! There are two metaphoric units of time-Palyopam and Sagaropam.
७. [प्र.] से किं तं पलिओवमे ? से किं तं सागरोवमे ?
भगवती सूत्र ( २ )
सत्थेण सुतिक्खेण वि छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सक्का । तं परमाणुं सिद्धा वदंति आदि पमाणाणं ॥४ ॥
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Bhagavati Sutra (2)
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