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ॐ ८. कषाय द्वार KASHAAYADVAR (PORT OF PASSIONS)
१३. [१] सकसाईहिं जीवादिओ तियभंगो। एगिदिएसु अभंगकं। कोहकसाईहिं जीवेगिीदेयवज्जो + तियभंगो। देवेहिं छन्भंगा। माणकसाई मायाकसाई जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। नेरइयदेवेहिं छभंगा।
लोभकसायीहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। नेरइएसु छन्भंगा। म [२] अकसाई जीव-मणुएहिं सिद्धेहिं तियभंगो।
१३. [१] सकषायी जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। एकेन्द्रियों (सकषायी) में अभंगक (तीन भंग नहीं, किन्तु मात्र एक भंग) कहना चाहिए। क्रोधकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को
छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। मानकषायी और मायाकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को 5 छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिकों और देवों में छह भंग कहने चाहिए। लोभकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए।
[२] अकषाई जीवों, जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए।
13. [1] For sakashaayi jivas (beings with passions) three alternatives, including jiva (in general) should be stated. For one-sensed (with passions) no alternative (abhang) just one state should be stated. For krodh-kashaayi jivas (beings with anger), leaving aside one-sensed
beings, three alternatives should be stated. For maan-kashaayi and 4 maaya-kashaayi jivas (beings with conceit and deceit), leaving aside jiva
(in general) and one-sensed beings, three alternatives should be stated. For infernal and divine beings six alternatives should be stated. For
lobh-kashaayi jivas (beings with greed), leaving aside jiva (in general) 卐 and one-sensed beings, three alternatives (bhang) should be stated. For
infernal beings six alternatives should be stated. ॐ [2] For akashaayi jivas (beings without passions)-three alternatives should be stated for jiva (in general), humans and Siddhas.
विवेचन : ८. कषाय द्वार-सकषायी जीवों में तीन भंग पाये जाते हैं, यथा-(१) सकषायी जीव, सदा ॐ अवस्थित होने से सप्रदेश होते हैं-यह प्रथम भंग; (२) उपशमश्रेणी से गिरकर सकषायावस्था को प्राप्त होते हुए
एकादि जीव पाये जाते हैं इसलिए ‘बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश' यह दूसरा भंग तथा 'बहुत सप्रदेश और
बहुत अप्रदेश' यह तीसरा भंग। नैरयिकादि में तीन भंग पाये जाते हैं। एकेन्द्रिय जीवों में अभंग है-अर्थात् उनमें 卐 अनेक भंग नहीं, किन्तु ‘बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश' यह एक ही भंग पाया जाता है; क्योंकि एकेन्द्रिय ।
जीवों में बहुत जीव ‘अवस्थित' और बहुत जीव 'उत्पद्यमान' पाये जाते हैं। सकषायी द्वार में 'सिद्ध पद' नहीं
कहना चाहिए, क्योंकि सिद्ध कषायरहित होते हैं। इसी तरह क्रोधादि कषायों में कहना चाहिए। क्रोधकषाय के म एकवचन-बहुवचन दण्डकद्वय में से दूसरे दण्डक में बहुवचन से जीव पद में और पृथ्वीकायादि पदों में 'बहुत
सप्रदेश और बहुत अप्रदेश' यह एक भंग ही कहना चाहिए; क्योंकि मान, माया और लोभ से निवृत्त होकर 5
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भगवती सूत्र (२)
(234)
Bhagavati Sutra (2) B555555555555555555555555555555
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