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5555555555555555555555 (Ans.] Gautam ! Earth-bodied beings (prithvikaayik jivas) are with 11 sections (sapradesh) as well as without sections (apradesh). The same
should be repeated for (apkaayiks or water-bodied beings)... and so on up to... plant-bodied beings (vanaspatikaayiks).
6. For all the remaining jivas (souls; living beings) up to Siddhas the statement about infernal beings should be repeated.
विवेचन : इस उद्देशक में भी १४ द्वारों के माध्यम से जीवों की सप्रदेशता, अप्रदेशता का वर्णन है। वृत्तिकार द्वारा इनका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया गया है
१. सप्रदेश द्वार-कालादेश का अर्थ है-काल की अपेक्षा से। विभागरहित को अप्रदेश और विभागसहित को सप्रदेश कहते हैं। समुच्चय में जीव अनादि है, इसलिए उसकी स्थिति अनन्त समय की है। इसलिए वह सप्रदेश है। जो जिस भाव (पर्याय व अवस्था) में प्रथम समयवर्ती होता है वह काल की अपेक्षा अप्रदेशी होता है और एक समय से अधिक दो-तीन-चार आदि समयों में वर्तने वाले काल की अपेक्षा सप्रदेश होता है।
कालादेश की अपेक्षा जीवों के भंग-जिस नैरयिक जीव को उत्पन्न हुए एक समय हुआ है, वह कालादेश से अप्रदेश है, और प्रथम समय के पश्चात् द्वितीय-तृतीयादि समयवर्ती नैरयिक सप्रदेश है। इस प्रकार औधिक जीव का एक नैरयिक आदि के २४ दण्डक और सिद्ध के मिलाकर २६ दण्डकों में एकवचन को लेकर कदाचित् अप्रदेश, कदाचित् सप्रदेश, ये दो-दो भंग होते हैं। इन्हीं २६ दण्डकों में बहुवचन को लेकर विचारक करने पर तीन भंग (विकल्प) होते हैं
(१) उपपात के विरहकाल में पूर्वोत्पन्न जीवों की संख्या असंख्यात होने से सभी सप्रदेश होते हैं, अतः वे ॥ - सब सप्रदेश हैं।
(२) पूर्वोत्पन्न नैरयिकों में जब एक नया नैरयिक उत्पन्न होता है, तब उसकी प्रथम समय की उत्पत्ति की ऊ अपेक्षा से वह 'अप्रदेश' कहलाता है। बाकी नैरयिक जीव जिनकी उत्पत्ति को दो-तीन-चार आदि समय हो गये हैं, वे 'सप्रदेश' कहलाते हैं।
(३) पूर्वोत्पन्न नैरयिकों के मध्य अनेक नैरयिक एक साथ उत्पन्न होते हैं, तब तीसरा भंग बनता है, अनेक 卐 सप्रदेश (पूर्वोत्पन्न की अपेक्षा) अनेक अप्रदेश (तत्काल उत्पद्यमान की अपेक्षा) पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय जीवों के __ में दो भंग होते हैं-वे कदाचित् सप्रदेश भी होते हैं, और कदाचित् अप्रदेश भी। क्योंकि उनमें प्रति समय अनेक 卐 जीव उत्पन्न होते रहते हैं। द्वीन्द्रियों से लेकर सिद्धपर्यन्त पूर्ववत् (नैरयिकों की तरह) तीन-तीन भंग होते हैं। म
Elaboration—This lesson describes sectionality and non-sectionality of jivas (souls; living beings) under 14 duars (ports; headings). The commentator (Vritti) has explained these as follows
(1) Sapradesh Dvar-Kaaladesh means relative to time (here it means in terms of sections or units of time). One without sections is apradesh (without sections) and one with sections is sapradesh (with 4 sections). Collectively speaking jiva (souls; living beings) are without a beginning, therefore their existence is of infinite duration and thus
355555555555555555555555555)555555555555555555555
| भगवती सूत्र (२)
(222)
Bhagavati Sutra (2)
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