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29. [Q. 1) Bhante ! Of the streevedak jivas (beings with female gender), $i purush-vedak jivas (beings with male gender), napumsak-vedak jivas
(beings with neuter gender) and avedak jivas (beings with no gender; Siddha) which one are comparatively less, more, equal and much more?
(Ans.] Gautam ! Purush-vedak jivas (beings with male gender) are minimum, streevedak jivas (beings with female gender) are countable times more then these, avedak jivas (beings with no gender; Siddha) are infinite times more than these and napumsak-vedak jivas (beings with neuter gender) are infinite times more than these.
[२ ] एएसिं सव्वेसिं पदाणं अप्पबहुगाई उच्चारेयव्वाइं जाव सम्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा ॐ अणंतगुणा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति !
॥छट्ठसए : तइओ उद्देसो समत्तो ॥ ॐ [२] इन (पूर्वोक्त) सर्व पदों (संयतादि से लेकर चरम तक चतुर्दश द्वारों में उक्त पदों) का अल्प
बहुत्व कहना चाहिए। (संयत पद से लेकर) यावत् सबसे थोड़े अचरम (सिद्ध तथा अभव्य) जीव हैं, 卐 और उनसे अनन्तगुणा चरम (भव्य) जीव हैं।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कहकर यावत् गौतम स्वामी ॐ विचरने लगे।
[2] In the same way comparative minimum-maximum for all these (preceding fourteen ports from samyat to charam) should be stated. Starting from samyat jivas... and so on up to... minimum are acharam (Siddhas) and infinite times more than these are charam jivas (beings worthy of liberation).
"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : वेदकों के अल्प-बहुत्व का स्पष्टीकरण-यहाँ पुरुषवेदक जीवों की अपेक्षा स्त्रीवेदक जीवों को संख्यातगुणा अधिक बताने का कारण यह है कि देवों की अपेक्षा देवियाँ बत्तीस गुणी और बत्तीस अधिक हैं, + नर मनुष्य की अपेक्षा नारी सत्ताईस गुणी और सत्ताईस अधिक हैं और तिर्यंच नर की अपेक्षा तिर्यंचनी तीन
गुणी और तीन अधिक हैं। स्त्रीवेदकों की अपेक्षा अवेदकों को अनन्तगुणा बताने का कारण यह है कि अनिवृत्ति ॐ बादर सम्परायादि वाले जीव और सिद्ध जीव अनन्त हैं, इसलिए वे स्त्रीवेदकों की अपेक्षा अनन्तगुणा हैं। म अवेदकों से नपुंसकवेदी अनन्त इसलिए हैं कि सिद्धों की अपेक्षा अनन्तकायिक जीव अनन्तगुणा हैं, जो सब नपुंसक हैं। (वृत्ति, पत्रांक २६०)
॥ छठा शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
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भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2)
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