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5 (जिस कर्म के स्थितिघात और रसघात में परिवर्तन किया गया हो ।) होते हैं। (इसलिए वे ) शीघ्र ही फ्र 5 विध्वस्त हो जाते हैं। जिस किसी भी वेदना को वेदते हुए श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं।'
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( भगवान ने पूछा - ) हे गौतम! जैसे कोई पुरुष सूखे तृणहस्तक ( घास के पूले) को धधकती हुई अग्नि में डाल दे तो क्या वह सूखे घास का पूला धधकती आग में डालते ही शीघ्र जल उठता है ?
( गौतम ने उत्तर दिया-) हाँ, भगवन् ! वह शीघ्र ही जल उठता है ।
( भगवान ने कहा-) गौतम ! इसी तरह श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं, यावत् वे श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले होते हैं।
इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि जो महावेदना वाला होता है, वह महानिर्जरा वाला होता है, फ यावत् वही श्रेष्ठ है जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है।
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(अथवा ) जैसे कोई पुरुष अत्यन्त तपे हुए लोहे के तवे (या कड़ाह) पर पानी की बूँद डाले तो वह यावत् शीघ्र ही विनष्ट हो जाती है, इसी प्रकार, हे गौतम! श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर कर्म भी शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं और वे यावत् महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले होते हैं।
4. [Q.] Bhante ! Then why is it said that one with extensive pain (mahavedana) is also with extensive shedding of karmas (mahanirjara)... and so on up to... with extensive shedding of karmas superior ?
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[Ans.] Gautam ! Suppose there are two pieces of cloth. One of these is soaked in slime (kardam) and the other in the dirt of a wheel (khanjan). Gautam ! Which one of these two pieces of cloth is more difficult to wash and more difficult to make free of stains; which one of these two is easier to wash, easier to make free of stains and easier to make sparkling (and paint)-the one soaked in slime or the one soaked in the dirt of a wheel? (Gautam) Bhante! Of these the one soaked in slime is more difficult to wash, more difficult to make free of stains and more difficult to make sparkling.
Or suppose a man is continuously hammering an anvil with great force producing loud sound. Even then he is not able to destroy the gross matter particles of that anvil. In the same way the demeritorious
भगवती सूत्र ( २ )
Bhagavati Sutra (2)
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(Bhagavan) Gautam ! In the same way the demeritorious karmas (paap-karma) of the infernal beings (nairayik) are firmly adhered 卐 5 (gaadhikrit), smoothly fixed (chikkanikrit), assimilated (shlisht; partially फ्र 5 intransigent or nidhatt) and fully fused (khilibhoot; intransigent or 5 nikachit). Therefore, in spite of suffering intense agony they are neither with extensive shedding nor with a noble end (mahaparyavasaan).
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