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३. [प्र. १ ] छट्ठी-सत्तमासु णं भंते ! पुढवीसु नेरइया महावेयणा ? [उ. ] हंता, महावेयणा। ३. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या छठी और सातवीं पृथ्वी (नरक) के नैरयिक महावेदना वाले हैं ? [उ.] हाँ गौतम ! वे महावेदना वाले हैं।
3. [Q. 1] Bhante ! Are the infernal beings (nairayik) of the sixth and the seventh prithvi (hell) with extensive pain?
[Ans.] Yes, Gautam ! They are with extensive pain. [प्र. २ ] ते णं भंते ! समणेहितो निग्गंथेहितो महानिज्जरतरा ? [उ. ] गोयमा ! णो इणढे समट्टे।
[प्र. २ ] भगवन् ! तो क्या वे (छठी-सातवीं पृथ्वी के नैरयिक) श्रमण-निर्ग्रन्थों की अपेक्षा भी महानिर्जरा वाले हैं ?
[उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात्-श्रमण-निर्ग्रन्थों की अपेक्षा महानिर्जरा वाले नहीं हैं।
IQ. 2] Bhante ! Does this mean that they (infernal beings of the sixth and seventh hell) are with extensive shedding of karmas even as compared with shraman nirgranths (ascetics)?
[Ans.] No, Gautam ! That is not correct (they are not with greater 5 shedding of karmas as compared with ascetics).
४. [प्र. ] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जे महावेयणे जाव पसत्थनिज्जराए ? + [उ. ] गोयमा ! से जहानामए दुवे वत्थे सिया, एगे वत्थे कद्दमरागरत्ते, एगे वत्थे खंजणरागरत्ते।
एतेसि णं गोयमा ! दोण्हं वत्थाणं कतरे वत्थे दुद्धोयतराए चेव, दुवामतराए चेव, दुपरिकम्मतराए चेव ? ॐ कयरे वा वत्थे सुद्धोयतराए चेव, सुवामतराए चेव, सुपरिकम्मतराए चेव, जे वा से वत्थे कद्दमरागरते ? जे वा से वत्थे खंजणरागरते ?
[प्र. ] भगवं ! तत्थ णं जे से वत्थे कद्दमरागरत्ते से णं वत्थे दुद्धोयतराए चेव दुवामतराए चेव दुप्परिकम्मतराए चेव।
[उ. ] एवामेव गोयमा ! नेरइयाणं पावाई कम्माइं गाढीकयाई चिक्कणीकयाइं सिलिट्ठीकयाई 5 खिलीभूयाइं भवंति; संपगाडं पि य णं ते वेयणं वेएमाणा नो महानिज्जरा, णो महापज्जवसाणा भवंति।
से जहा वा केइ पुरिसे अहिगरणी आउडेमाणे महया महया सद्देणं महया महया घोसेणं महया महया 9 परंपराघाएणं नो संचाएति तीसे अहिगरणीए केइ अहाबायरे वि पोग्गले परिसाडित्तए। एवामेव गोयमा !
नेरइयाणं पावाई कम्माइं गाढीकयाइं जाव नो महापज्जवसाणा भवंति। ॐ भगवं ! तत्थ जे से वत्थे खंजणरागरत्ते से णं वत्थे सुद्धोयतराए चेव सुवामतराए चेव सुपरिकम्मतराए चेव।
| भगवती सूत्र (२)
(168)
Bhagavati Sutra (2)
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