________________
55555555555555555555555555555 vehicle) named Suman belonging to Soma Maharaj, the Lok-pal of Devendra Ishan, the overlord of gods. Its length-breadth (ayamvishkambh) is 1.25 million Yojans. Other details should be repeated as mentioned in aphorism 4 of the seventh lesson of the third chapter with regard to Shakrendra (about the mahavimaan of Lok-pal Soma)... and so on up to... anointing. __५. चउण्हं वि लोगपालाणं विमाणे-विमाणे उद्देसओ। चउसु विमाणेसु चत्तारि उद्देसा अपरिसेसा। नवरं ठितीए नाणत्तं
आदि दुय तिभागूणा पलिया धणयस्स होति दो चेव। दो सतिभागा वरुणे पलियमहावच्चदेवाणं॥१॥
॥ चउत्थे सए : पढम-बिइय-तइय-चउत्था उद्देसा समत्ता॥ ५. (एक लोकपाल के विमान की वक्तव्यता जहाँ पूर्ण होती है, वहाँ एक उद्देशक समाप्त होता है।) इस प्रकार चारों लोकपालों में से प्रत्येक के विमान की वक्तव्यता पूरी हो वहाँ एक-एक उद्देशक समझना। चारों (लोकपालों के चारों) विमानों की वक्तव्यता में चार उद्देशक पूर्ण हुए समझना। विशेष यह है कि इनकी स्थिति में अन्तर है। वह इस प्रकार है-आदि के दो-सोम और यम लोकपाल की स्थिति (आयु) एक-तिहाई भाग कम दो-दो पल्योपम की है, वैश्रमण लोकपाल की स्थिति दो पल्योपम की है और वरुण लोकपाल की स्थिति एक-तिहाई भाग अधिक दो पल्योपम की है। अपत्यरूप देवों की स्थिति एक पल्योपम की है।
॥ चतुर्थ शतक : प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥ 5. (With the end of the description of the celestial vehicle of one Lokpal ends one lesson). In the same way with the end of the description of the celestial vehicle of each of the four Lok-pals end each of the four lessons. The end of descriptions of the four celestial vehicles should be taken to be the end of four lessons. The difference is that there is a variation in their life-spans-The life-spans of the first two Lok-pals, Soma and Yama, is one and one-third of a Palyopam (or two-thirds of a Palyopam less in two Palyopams), that of Lok-pal Vaishraman is tu Palyopams and that of Lok-pal Varun is two and one-third Palyopams. The life-span of the gods recognized as their sons is one Palyopam. • END OF THE FIRST-SECOND-THIRD-FOURTH LESSON OF THE
FOURTH CHAPTER •
भगवतीसूत्र (१)
(524)
Bhagavati Sutra (1) |
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org