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तृतीय शतक : नवम उद्देशक THIRD SHATAK (Chapter Three) : NINTH LESSON
इन्द्रिय INDRIYA (SENSE ORGANS) पंचेन्द्रिय विषयों का निरूपण SUBJECTS OF FIVE SENSE ORGANS
१.[प्र.] रायगिहे जाव एवं वयासी-कतिविहे णं भंते ! इंदियविसए पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! पंचविहे इंदियविसए पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियविसए, जीवाभिगमे जोइसियउद्देसो नेयव्वो अपरिसेसो।
॥ तइए सए : नवमो उद्देसो समत्तो ॥ १. [प्र.] राजगृह नगर में श्री गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा-भगवन् ! इन्द्रियों के विषय कितने प्रकार के हैं? ___ [उ. ] गौतम ! इन्द्रियों के विषय पाँच प्रकार के हैं। वे इस प्रकार हैं-श्रोत्रेन्द्रिय-विषय इत्यादि। इस सम्बन्ध में जीवाभिगमसूत्र में कहा हुआ ज्योतिष्क उद्देशक सम्पूर्ण समझना चाहिए। ___ 1. [Q.] In Rajagriha city... and so on up to... Gautam Swami submitted after worship-Bhante ! How many are the subjects of sense organs (indriyas)?
(Ans.] Gautam ! There are five subjects of sense organs (indriyas)subjects of the organ of hearing (shrotrendriya) etc. In this regard the Jyotishk chapter from Jivabhigam Sutra should be quoted as a whole.
विवेचन : प्रस्तुत सूत्र में जीवाभिगमसूत्र के ज्योतिष्क उद्देशक का संदर्भ देकर पंचेन्द्रिय विषयों का निरूपण किया है।
जीवाभिगमसूत्र के अनुसार इन्द्रिय विषय-सम्बन्धी विवरण का सार इस प्रकार है-पाँच इन्द्रियों के पाँच विषय हैं; यथा
[१] श्रोत्रेन्द्रिय विषय दो प्रकार का है। यथा-शुभशब्द और अशुभशब्द। [२] चक्षुरिन्द्रिय विषय दो प्रकार का है। यथा-सुरूप और दुरूप। [३] घ्राणेन्द्रिय विषय दो प्रकार का है। यथा-सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध। [४] रसनेन्द्रिय विषय दो प्रकार का है। यथा-सुरस-परिणाम और दुरस-परिणाम। [५] स्पर्शनेन्द्रिय विषय दो प्रकार का है। यथा-सुख-स्पर्श-परिणाम और दुःख-स्पर्श-परिणाम।
॥तृतीय शतक : नवम उद्देशक समाप्त ॥
भगवतीसूत्र (१)
(518)
Bhagavati Sutra (1)
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