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குமிழசுமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமி*******தமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிழ***********
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[4] Under the command, attendance, order and direction of Soma 5 Maharaj, the Lok-pal of Devendra Shakra, the overlord of gods are following gods - Soma- kayik (Samanik gods), Somadev - kayik (family members), Vidyut Kumars and Vidyut Kumaris, Agni Kumars and Agni
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5 Kumaris, Vayu Kumars and Vayu Kumaris, the moon, the sun, planets, 5 and stars. These and other such gods devoted to him, 卐
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gods. It is one hundred thousand Yojans long-wide and as large as Jambu Dveep.
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[3] The dimensions of the mansions and other structures in this capital city are half those of the mansions of Vaimanik gods. The length-breadth of the basement pedestal (peeth-bandh) is sixteen thousand Yojans and its circumference is slightly more than 50,597 Yojans. It has four rows of mansions and there is no main assembly (Sudharma Sabha).
constellations
supporting
him and dependent on him live under his command, attendance, order and direction.
[५] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पज्जंति, तं जहा - गहदंडा इ वा,
5 गहमुसला इवा, गहगज्जिया इ वा, एवं गहजुद्धा इवा, गहसिंघाडगा इवा, गहावसव्वा इवा, अन्भाति 5
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वा, अब्भरुक्खा इवा, संझा इ वा, गंधव्वनगरा इ वा, उक्कापाया इवा, दिसीदाहा इ वा, गज्जिया
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इवा, विज्जुया इवा, पंसुवुट्टी इ वा, जूवेति वा, जक्खालित्ते इ वा, धूमिया इवा, महिया इवा, रयुग्घाया 5
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इवा, चंदोबरागा इवा, सूरोवरागा इवा, चंदपरिवेसा इ वा, सूरपरिवेसा इ वा, पडिचंदा इ वा, पडिसूरा इवा, इंदधणू इवा, उदगमच्छ - कपिहसिय- अमोहपाईणवाता इ वा, पडीणवाता इवा, जाव सवंट्टयवाता इवा, गामदाहा इवा, जाव सन्निवेसदाहा इ वा पाणक्खया जणक्खया धणक्खया कुलक्खया वसणब्भूया अणारिया जे यावन्ने तहप्पगारा ण ते सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो अण्णाया अदिट्ठा असुया अमुया अविण्णाया, तेसिं वा सोमकाइयाणं देवाणं ।
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[५] इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में जो कार्य होते हैं, यथा- ग्रहदण्ड (मंगल 5 आदि ग्रहों की दण्ड की तरह सीधी पंक्ति), ग्रहमूसल ( मूशल की तरह आकृति में ऊँचे ग्रह), ग्रहगर्जित
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5 ( ग्रहों की गति करते समय होने वाली गर्जना ), ग्रहयुद्ध ( ग्रहों का आमने-सामने उत्तर-दक्षिण में रहना), ग्रहशृंगाटक ( सिंघाड़ों के आकार में ग्रहों का रहना ), ग्रहापसव्य ( ग्रहों की वक्र चाल),
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फ अभ्र (बादल), अभ्रवृक्ष (बादलों की वृक्ष रूप में बनी आकृति), संध्या (दिशाओं का लाल होना ), गंधर्वनगर ( नगर के आकार में प्रतिबिम्ब बनना) उल्कापात (तारा टूटना ), दिग्दाह (दिशाओं में अग्नि 5 लपटों जैसा प्रकाश), विद्युत (बिजली चमकना), धूल की वृष्टि, यूपक (संध्या की प्रभा और चन्द्रप्रभा मिलना ), संध्या - फूलना, यक्षादीप्त (बिजली चमकने से यक्षाकार दीखने वाला प्रकाश), धूमिका फ्र
(धुंध ), मिहिका (ओस), रज उद्घात ( आकाश में धूलि का छा जाना), चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष / 5
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पंक्तिबद्ध
की
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तृतीय
शतक : सप्तम उद्देशक
295595555
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Third Shatak: Seventh Lesson
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