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प्रथम शतक : प्रथम उदेशक FIRST SHATAK (Chapter One) : FIRST LESSON
मंगलाचरण OBEISANCE
१. नमो अरिहंताणं। नमो सिद्धाणं। नमो आयरियाणं। नमो उवज्झायाणं। नमो लोए सव्व साहूणं। । २. नमो बंभीए लिवीए। नमो सुयस्स।
१. अर्हन्तों (अरिहंतों) को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, लोक में (मोक्षमार्ग के सम्यक् आराधक) सर्व साधुओं को नमस्कार।
२. ब्राह्मी लिपि को नमस्कार। श्रुत (द्वादशांगी रूप अर्हत्प्रवचन या श्रुतज्ञान) को नमस्कार।
1. Obeisance to the Arihantas (Victors). Obeisance to the Siddhas 4 Liberated Souls). Obeisance to the Acharyas (spiritual leaders who head an order or group). Obeisance to the Upadhyayas (Preceptors or teachers f scriptures). Obeisance to all the Sadhus (ascetics or righteous aspirants on the path of liberation) in the world.
2. Obeisance to the Brahmi script. Obeisance to the Shrut (the twelve part corpus of the sermon of the omniscient or the scriptural knowledge).
विवेचन : वृत्तिकार आचार्य अभयदेव सूरि ने 'अरहन्त' शब्द के भिन्न-भिन्न उच्चारणों के आधार पर सात हार्य किये हैं। जिनमें मुख्यतः 'अरहन्त' शब्द से वीतरागता, 'अर्हन्त' शब्द से त्रिलोकपूज्यता तथा 'अरिहन्त' बाद से कर्मशत्रुओं का नाश करने वाले भाव प्रकट किये हैं। इसी प्रकार 'सिद्ध' शब्द के ६ अर्थ करके उनकी
तकृत्यता, शाश्वतता अष्टविध कर्मों से मुक्तता आदि भाव सूचित किये हैं। 'आचार्य' शब्द के ४, ‘उपाध्याय' सद के ५ तथा 'साधु' शब्द के भिन्न-भिन्न ३ अर्थ करके उनके गुणों की विशिष्टता बताई है। 'साधु' शब्द के सर्वधनों में एक महत्त्वपूर्ण गाथा को उद्धृत करके वृत्तिकार कहते हैं
असहाए सहायत्तं करेंति मे संयमं करेंतस्स।
एएण कारणेणं णमामिऽहं सब साहूणं। "वे संयम साधना करने वाले भव्य प्राणियों के लिए मोक्ष साधना में सहायक बनते हैं, इस कारण मैं को नमस्कार करता हूँ।'' * 'ब्राह्मी लिपि' को नमस्कार क्यों किया? इसका समाधान देते हुए वृत्तिकार कहते हैं यह गणधरों ने नहीं, पितु शास्त्र को लिपिबद्ध करने वाले किसी परम्परानुगामी ने किया है, ऐसा अनुमान है। इससे यह भी सूचित ता है कि ब्राह्मी लिपि के प्रथम पुरस्कर्ता भगवान ऋषभदेव को नमस्कार करना ही मुख्य ध्येय रहा है। वस्तुतः संस्कार भावश्रुत (ज्ञान) को ही किया जाता है, लिपि रूप द्रव्यश्रुत को नहीं, इस दृष्टि से ज्ञानदाता भगवान मदेव को यह नमस्कार किया गया है। (भगवती वृत्ति, पत्रांक १ से ५)
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जम शतक : प्रथम उद्देशक
(3)
First Shatak: First Lesson
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