________________
)
))
))
))
)
)
khadya, svadya (staple food, liquids, general food and savoury food) cooked. After that he took his bath, performed propitiatory rites (Bali. karma), conciliatory and auspicious rituals (Kautuk-mangal and prayashchit), put on clean and excellent ceremonial dresses and embellished himself with light but costly ornaments. At meal-time that Tamali Gathapati came to the dining area and took a comfortable seat. 4 Thereafter he sat to dine with friends, family members, relatives and servants, tasting and savouring, serving, feeding and eating that ample ashan, paan, khadya, svadya (staple food, liquids, general food and savoury food).
२६. जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए तं मित्तं जाव परियणं विउलेणं,
असणपाणखाइम-साइम पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लाऽलंकारेण य सक्कारेइ, सम्माणेइ तस्सेव मित्त-नाइ मजाव परियणस्स पुरओ जेटं पुत्तं कुटुंबे ठावेइ, ठावेत्ता तं मित्त-नाइ-णियग-संबंधिपरिजणं जेट्टपुत्तं च ॐ आपुच्छइ, आपुच्छित्ता मुण्डे भवित्ता पाणामाए पव्वजाए पव्वइए।
पबइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-'कप्पइ मे जावज्जीवाए छटछट्टेणं जाव आहारित्तए' त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, अभिगिण्हित्ता जावज्जीवाए छठंछट्टेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिडिभय २ सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। छट्ठस्स वि य णं पारणयंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय तामलित्तीए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ, अडित्ता सुद्धोयणं पडिग्गाहेइ, तिसत्तखुत्तो उदएणं पक्खालेइ, तओ पच्छा आहारं आहारेइ।
२६. भोजन करने के बाद उसने पानी से हाथ धोये और चुल्लू में पानी लेकर कुल्ला किया, मुख साफ करके स्वच्छ हुआ। फिर उन सब मित्र-ज्ञाति-स्वजन-परिजनादि का विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, पुष्प, वस्त्र, सुगन्धित द्रव्य, माला, अलंकार आदि से सत्कार-सम्मान किया। फिर उन्हीं मित्र-स्वजन आदि के समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में (प्रमुख स्थान पर) स्थापित किया-तत्पश्चात् उन्हीं मित्र-स्वजन आदि तथा अपने ज्येष्ठ पुत्र को पूछकर और मुण्डित होकर 'प्राणामा' नाम की प्रव्रज्या अंगीकार की।
प्राणामा-प्रव्रज्या में प्रवजित होते ही तामली ने इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण किया-'आज से मेरा , 4 कल्प यह होगा कि मैं आजीवन निरन्तर छट्ठ-छ? तप करूँगा, यावत् पूर्वकथितानुसार भिक्षाविधि से के केवल भात (पके हुए चावल) लाकर उन्हें २१ बार पानी से धोकर उनका आहार करूँगा।' इस प्रकार फ़
अभिग्रह धारण करके वह तामली तापस यावज्जीवन निरन्तर बेले-बेले तप करके दोनों भुजाएँ ऊँची
करके आतापना भूमि में सूर्य के सम्मुख आतापना लेता हुआ विचरण करने लगा। बेले के पारणे के दिन म आतापना भूमि से नीचे उतरकर स्वयं काष्ठपात्र लेकर ताम्रलिप्ती नगरी में ऊँच, नीच और मध्यम कुलों
के गृह-समुदाय से विधिपूर्वक भिक्षा के लिए घूमता था। भिक्षा में वह केवल भात लाता और उन्हें २१ ॐ बार पानी से धोता था, तत्पश्चात् आहार करता था। .
))
))
)
)
))
))
)))
))
卐
| तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
(375)
Third Shatak : First Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org