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बादल उमड़-घुमड़कर आ गये हों और बरसने की तैयारी हो, ऐसी स्थिति में वे तमाम मनुष्य वर्षा से
रक्षा के लिए उस शाला में प्रविष्ट हो जाते हैं, इसी प्रकार ईशानेन्द्र की वह दिव्य ऋद्धि, देव-प्रभाव एवं ॐ दिव्य कांति ईशानेन्द्र के शरीर में प्रविष्ट हो गई। (सचित्र रायपसेणिय सूत्र में विस्तृत वर्णन व चित्र देखें)।
[Q.2] Bhante ! Why is it said that the divine opulence (displayed by Ishanendra) was drawn into and disappeared within his own body?
[Ans.] Gautam ! Suppose there is a cone shaped (like hill-top) camouflaged house (kutakar-shala), large and deep underground. It is plastered within and outside with cow-dung. It is surrounded by a parapet wall and has strong and air-tight but concealed doors... and so on up to... the example of kutakar-shala should be cited here.
The example-Suppose there is a cone shaped (like hill-top) camouflaged house, large and deep underground. It is plastered within and outside with cow-dung. It is surrounded by a parapet wall and has strong and air-tight but concealed doors. A large crowd is sitting near that camouflaged house. If that crowd suddenly sees dark rain bearing clouds or a terrible storm approaching, it at once enters that camouflaged house and disappears. In the same way all the opulence and divine illusion displayed by Ishanendra entered and vanished into his body. ईशानेन्द्र का पूर्वभव : तामली तापस PAST BIRTH OF ISHANENDRA : TAMALI TAPAS
२४. [प्र. ] ईसाणेणं भंते ! देविंदेणं देवरण्णा सा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवजुती दिब्वे देवाणुभागे किण्णालद्धे ? किण्णापत्ते ? किण्णा अभिसमन्नागए ? के वा एस आसि पुवभवे ? किंणामए वा ? + किंगोत्ते वा ? कतरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा जाव सत्रिवेसंसि वा ? किं वा सोच्चा ? किं वा दच्चा ?
किं वा भोच्चा ? किं वा किच्चा ? किं वा समायरित्ता ? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा ॐ अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म ज णं ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सा दिव्या देविड्ढी जाव अभिसमन्नागया ?
[उ. ] एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तामलित्ती नामंज नगरी होत्था। वण्णओ। तत्थ णं तामलित्तीए नगरीए तामली नामं मोरियपुत्ते गाहावती होत्था। अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए यावि होत्था। - २४. [प्र. ] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-धुति (कान्ति) 5 और दिव्य देव-प्रभाव किस कारण से उपलब्ध किया, किस कारण से प्राप्त किया और किस हेतु से
अभिमुख (भोग के लिए सामने उपस्थित) किया? यह ईशानेन्द्र पूर्वभव में कौन था? इसका क्या नाम, ॐ क्या गोत्र था? यह किस ग्राम, नगर अथवा यावत् किस सन्निवेश में रहता था? इसने क्या (धर्म-)
सुनकर, क्या (आहार-पानी आदि-) देकर, क्या (रूखा-सूखा-) खाकर, क्या (तप एवं शुभ भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1) प्र ध
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