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5 अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिवई
२०. इसके पश्चात् एक समय श्रमण भगवान महावीर 'मोका' नगरी के 'नन्दन' नामक उद्यान से विहार कर जनपद में विचरण करने लगे ।
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20. After that one day Shraman Bhagavan Mahavir left Nandan y garden in Moka city and resumed his itinerant way in other inhabited y
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areas.
फ जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्यं देविड्ढि जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
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ईशानेन्द्र का वन्दनार्थ आगमन ARRIVAL OF ISHANENDRA TO PAY HOMAGE
२१. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था वण्णओ। जाव परिसा पज्जुवासइ ।
२२. उस काल उस समय में ईशानकल्प का देवेन्द्र देवराज, शूलपाणि (हाथ में त्रिशूल धारक )
5 वृषभवाहन ( बैल पर सवारी करने वाला) लोक के उत्तरार्द्ध का स्वामी, अट्ठाईस लाख विमानों का
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२१. उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था । ( भगवान वहाँ पधारे) यावत् परिषद्
भगवान की पर्युपासना करने लगी।
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there.) People commenced worship.
21. During that period of time there was a city called Rajagriha.
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Description (as before )... and so on up to ... ( Bhagavan Mahavir arrived ५
२२. तेणं कालेणं तेण समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे उत्तरडूढलोगहिवई अरयंबरवत्थधरे आलइयमाल उडे
नवहेमचारुचित्त
5 दिशाओं को उद्योतित एवं प्रभासित करता हुआ, ईशानकल्प में ईशानावतंसक विमान में राजप्रश्नीयसूत्र ५
में सूर्याभ देव के वर्णन अनुसार दिव्य देव ऋद्धि का अनुभव करता हुआ (भगवान के दर्शन - वन्दन करने आया और यावत् जिस दिशा से आया था उसी दिशा में वापस चला गया। (सूर्याभदेव के आगमन 5 एवं नाट्य प्रदर्शन का सम्पूर्ण वर्णन सचित्र रायपेसेणियसूत्र में देखें)
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चंचलकुंडलविलिहिज्ज माणगंडे जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे ईसाणे कप्पे ईसाणवर्डिसे विमाणे ५
अधिपति, आकाश के समान रजरहित निर्मल वस्त्रधारक, सिर पर माला से सुशोभित मुकुटधारी,
नवीन स्वर्णनिर्मित सुन्दर, विचित्र एवं चंचल कुण्डलों से कपोल को जगमगाता हुआ यावत् दसों
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22. During that period of time Ishanendra, the overlord (Indra) of Ishan Kalp, trident-bearing, bull-mounted, the master of the northern half of Lok, the owner of two million eight hundred thousand celestial
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5 vehicles, adorned in sky-like clean and pure dress, with a garland f embellished crown on his head, with cheeks glowing in radiance of exquisite and dangling ear-rings made of fresh gold... and so on up to... brightening and enlightening the ten directions and dwelling in the Ishanavatamsak Vimaan in Ishan Kalp as described in Rajaprashniya
5 Sutra in context of Suryabh Dev... and so on up to ... enjoying his divine
फ्र भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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