SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 5 卐 भवनपति देवों के दो निकाय हैं। दक्षिण निकाय ( दाक्षिणात्य ) और उत्तर निकाय ( औदीच्य ) । निम्न जाति 5 के निम्न नाम के दस-दस प्रकार के भवनपति दोनों निकायों में होने से बीस भेद होते हैं - ( 9 ) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३) विद्युतकुमार, (४) सुपर्णकुमार, (५) अग्निकुमार, (६) पवनकुमार, (७) उदधिकुमार, 5 (८) द्वीपकुमार, (९) दिशाकुमार, और (१०) स्तनितकुमार । इन बीस प्रकार के भवनपति देवों के दस दक्षिण निकाय के और दस उत्तर निकाय के कुल बीस इन्द्र हैं । दक्षिण निकाय के इन्द्र - (१) चमर, (२) धरण, (३) वेणुदेव, (४) हरिकान्त, (५) अग्निशिख, (६) पूर्ण, (८) जलकान्त, (८) अमित, (९) विलम्ब, और (१०) घोष । 卐 5 उत्तर निकाय के इन्द्र - (१) बलि, (२) भूतानन्द, (३) वेणुदालि, (४) हरिस्सह, (५) अग्निमाणव, (६) वशिष्ठ, (७) जलप्रभ, (८) अमितवाहन, (९) प्रभंजन, और (१०) महाघोष । फ 5 卐 फ्र सामानिक देव संख्या - चमरेन्द्र के ६४ हजार और बलीन्द्र के ६० हजार सामानिक देव हैं, शेष सब इन्द्रों के प्रत्येक ६-६ हजार सामानिक देव हैं। आत्मरक्षक देव संख्या-जिसके जितने सामानिक देव होते हैं, उससे आत्मरक्षक देव होते हैं । अग्रमहिषियों की संख्या-चमरेन्द्र और बलीन्द्र के पाँच-पाँच; शेष धरणेन्द्र आदि इन्द्र के छह-छह अग्रमहिषियाँ हैं। त्रायस्त्रिंश और लोकपालों की संख्या नियत है। (५) किन्नर, (६) किंपुरुष, (७) महोरग, और (८) गन्धर्व । इनमें से प्रत्येक प्रकार के व्यन्तर देवों के दो-दो इन्द्र होते हैं अर्थात् १६ दक्षिण दिशा के, १६ उत्तर दिशा के । इस प्रकार कुल बत्तीस इन्द्र हैं । व्यन्तर इन्द्रों का 5 परिवार - वाणव्यन्तर देवों में प्रत्येक इन्द्र के चार-चार हजार सामानिक देव और इनसे चार गुने अर्थात् प्रत्येक 5 के १६-१६ हजार आत्मरक्षक देव होते हैं। इनमें त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते। प्रत्येक इन्द्र के चार-चार अग्रमहिषियाँ होती हैं । 5 कूछ अधिक स्थल को भरने में समर्थ हैं। (प्रज्ञापनासूत्र, तत्त्वार्थसूत्र, अ. ४, सू. ६ व ११ का भाष्य) 卐 卐 ज्योतिष्केन्द्र परिवार–ज्योतिष्क निकाय में ५ प्रकार के देव हैं-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा। इनमें सूर्य और चन्द्र दो मुख्य एवं इन्द्र हैं। इनके भी प्रत्येक इन्द्र के चार-चार हजार सामानिक देव, १६ - १६ हजार 5 आत्मरक्षक और चार-चार अग्रमहिषियाँ होती हैं। ज्योतिष्क देवेन्द्रों के त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते। फ्र फ्र व्यन्तर देवों के इन्द्र - व्यन्तर देवों के ८ प्रकार हैं - (१) पिशाच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, 5 चौगुने प्रत्येक वैक्रिय शक्ति - इनमें से दक्षिण के भवनपति देव और सूर्यदेव अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप ठसाठस भरने में समर्थ हैं, और उत्तर दिशा के देव और चन्द्रदेव अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप से Elaboration-Dharanendra-He is the overlord (Indra) of Naag Kumar gods of the southern direction. The description of their abodes, the Upapat Parvat of Lok-pals, five armies, five commanders and six chief queens is available in Sthananga and Prajnapana Sutra. Jain Education International Bhavan-pati Devs (abode dwelling gods have two classes (nikaya) - Dakshin Nikaya or Dakshinatya (southern class) and Uttar Nikaya or Audichya (northern class). There are ten clans of Bhavan-pati Devs (abode dwelling gods) in each of these classes with the same names (355) making a total of twenty groups-(1) Asur-kumar, (2) Naag-kumar, तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक For Private & Personal Use Only 295555559555555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55955555 5 5 5 5 5 555 5 5 5 55 55 96 95 2 Third Shatak: First Lesson 卐 卐 卐 卐 फ्र फ़फ़फ़ 卐 卐 卐 फ्र फ्र 卐 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy