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________________ 27 95 95 95 5 59595959595955 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 52 फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ द्वितीय शतक : नवम उद्देशक SECOND SHATAK (Chapter Two): NINTH LESSON समयक्षेत्र -- सम्बन्धी प्ररूपणा SAMAYAKSHETRA (THE SPHERE OF TIME) द्वीप ( समय क्षेत्र) DVEEP OR SAMAYAKSHETRA (CONTINENTS OR THE SPHERE OF TIME) १. [ प्र. ] किमिदं भंते ! 'समयखेत्ते ' त्ति पवुच्चति ? [ उ. ] गोयमा ! अड्ढाइज्जा दीवा दो य समुद्दा- एस णं एवतिए 'समयखेत्ते' त्ति पवुच्चति । 'तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे सव्वदीव - समुद्दाणं सव्वब्भंतरए' (जीवाजीवाभि. सू. १२४, पत्र १७७) एवं 5 जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्या जाव अब्भिंतरं पुक्खरद्धं जोइसविहूणं । ॥ बितीए सए : नवमो उद्देसो समत्तो ॥ १.[प्र.] भगवन् ! समय क्षेत्र किसे कहा जाता है ? [ उ. ] गौतम ! अढाई द्वीप और दो समुद्र इतना यह प्रदेश 'समयक्षेत्र' है। इनमें जम्बूद्वीप नामक समस्त द्वीपों और समुद्रों के बीचोंबीच है। इस प्रकार जीवाभिगमसूत्र में कहा हुआ सारा वर्णन यहाँ यावत् आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध तक कहना चाहिए; किन्तु ज्योतिष्कों का वर्णन छोड़ देना चाहिए। 1. [Q.] Bhante ! What is called Samayakshetra or Sphere of Time ? भगवतीसूत्र (१) विवेचन : समयक्षेत्र का स्वरूप- समय अर्थात् काल, सूर्य की गति से पहचाना जाने वाला दिवस - मासादि रूप काल समयक्षेत्र - मनुष्यक्षेत्र में ही है, इससे आगे नहीं है; क्योंकि इससे आगे के सूर्य चर ( गतिमान) नहीं हैं, अचर हैं। जीवाभिगमसूत्र में मनुष्यक्षेत्र सम्बन्धी एक गाथा है 卐 [Ans.] Gautam ! The area covering Adhai Dveep (two and a half 5 continents) and two oceans is called Samayakshetra or Sphere of Time. Of these, the continent called Jambu Dveep is at the center of all continents and oceans. In the same way all description from Jivabhigam Sutra should be quoted here up to inner Pushkarardh but excluding the description of Jyotishks. Jain Education International अर्थात् - मानुषोत्तर पर्वत तक मनुष्यक्षेत्र कहलाता है। जहाँ तक अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका और मनुष्य हैं, वहाँ तक मनुष्यलोक कहलाता है। जहाँ तक समय, आवलिका आदि काल है, स्थूल अग्नि है, आकर, निधि, नदी, उपराग ( चन्द्र-सूर्यग्रहण) है, चन्द्र, सूर्य, तारों अरिहंत - समय - बायर - विज्जू - थणिया बलाहगा अगणी । आगर - णिहि - ई-उवराग - णिग्गमे वुड्ढवयणं च ॥ (322) फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ Bhagavati Sutra (1) For Private & Personal Use Only 卐 卐 卐 卐 - 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 5 5 55 55 5 55 55 5 55592 5 www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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