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卐 about gods should be quoted from the second chapter, Sthan-pad, of 卐 Prajnapana Sutra. The difference being that here abodes of the Bhavan
vaasi Devs (abode-dwelling gods) should be mentioned; and also that their instantaneous birth (upapat) occurs only in innumerable fraction of Lok (occupied space; universe). All these details should be repeated in full up to Siddhagandika. The location (pratishthan) of divine realms (kalps), their depth, height and structure as well as other related information should be quoted from the Pratipatti-4 of Jivabhigam Sutra up to the lesson titled Vaimanik.
विवेचन : देवों के स्थान आदि-प्रज्ञापनासूत्र के दूसरे स्थानपद में भवनवासियों का स्थान इस प्रकार बताया है-रलप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन है। उसमें से एक हजार योजन ऊपर और एक हजार योजन नीचे छोड़कर बीच में १ लाख ७८ हजार योजन में भवनपति देवों के भवन हैं। उपपात
भवनपतियों का उपपात लोक के असंख्यातवें भाग में होता है। मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा और स्थान की 卐 अपेक्षा वे लोक के असंख्येय भाग में ही रहते हैं, क्योंकि उनके ७ करोड़ ७२ लाख भवन लोक के असंख्येय ___ भाग में ही हैं। इसी तरह असुरकुमार आदि के विषय में तथा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, सभी देवों
के स्थानों का कथन करना चाहिए, यावत् सिद्ध भगवान के स्थानों का वर्णन करने वाले 'सिद्धगण्डिका' नामक 卐 प्रकरण तक कहना चाहिए। (प्रज्ञापनासूत्र, द्वितीय स्थानपद; पृष्ठ ९४-१३०)
वैमानिक-प्रतिष्ठान आदि-जीवाभिगमसूत्र के वैमानिक उद्देशक में कथित वर्णन संक्षेप में इस प्रकार है-- 9 (१) प्रतिष्ठान-सौधर्म और ईशान कल्प में विमान की पृथ्वी : घनोदधि के आधार पर टिकी हुई है। इससे आगे 卐 के तीन घनोदधि और वात पर प्रतिष्ठित हैं। उससे आगे के सभी ऊपर के विमान आकाश के आधार पर
प्रतिष्ठित हैं। (२) बाहल्य (मोटाई) और उच्चत्व-सौधर्म और ईशान कल्प में विमानों की मोटाई २,७०० योजन 卐 और ऊँचाई ५०० योजन है। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में मोटाई २,६०० योजन और ऊँचाई ६०० योजन म है। ब्रह्मलोक और लान्तक में मोटाई २,५०० योजन, ऊँचाई ७०० योजन है। महाशुक्र और सहस्रार कल्प में
मोटाई २,४०० योजन, ऊँचाई ८०० योजन है। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोकों में मोटाई ॐ २,३०० योजन, ऊँचाई ९०० योजन है। नवग्रैवेयक के विमानों की मोटाई २,२०० योजन और ऊँचाई म १,००० योजन है। पंच अनुत्तर विमानों की मोटाई २,१०० योजन और ऊँचाई १,१०० योजन है।
(३) संस्थान-दो प्रकार के (१) आवलिकाप्रविष्ट, और (२) आवलिकाबाह्य। वैमानिक देव आवलिकाप्रविष्ट
(पंक्तिबद्ध) तीनों संस्थानों वाले हैं-वृत्त (गोल), त्र्यंस (त्रिकोण) और चतुरस्र (चतुष्कोण); आवलिकाबाह्य ॐ नाना प्रकार के संस्थानों वाले हैं। इसी तरह विमानों के प्रमाण, रंग, कान्ति, गन्ध आदि का सब वर्णन 卐 जीवाभिगमसूत्र से जान लेना चाहिए। (जीवाभिगमसूत्र, प्रतिपत्ति ४, विमान-उद्देशक २, सू. २०९-२१२)
॥ द्वितीय शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त ॥ ___Elaboration-Areas inhabited by gods-In the second chapter, Sthan
pad, of Prajnapana Sutra the areas inhabited by Bhavan-vaasi Deus fi (abode-dwelling gods) is described as follows--The depth of Ratnaprabha
prithvi is one hundred eighty thousand Yojans. Leaving one thousand
भ55555555555555555555555555555555555555555
| द्वितीय शतक : सप्तम उद्देशक
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Second Shatak: Seventh Lesson
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