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________________ फफफफफफफफफफ द्वितीय शतक : छठा उद्देशक SECOND SHATAK (Chapter Two): SIXTH LESSON भाषा BHASHA ( SPEECH) भाषा का स्वरूप FORM OF SPEECH १. [प्र. ] से णूणं भंते ! " मन्त्रामी" ति ओहारिणी भासा ? [ उ. ] एवं भासापदं भाणियव्वं । ॥ बितीय सए : छट्टो उद्देसो समत्तो ॥ १. [ प्र. ] भगवन् ! मैं मनन करता हूँ, क्या यह अवधारिणी भाषा है ? [उ.] गौतम ! उपर्युक्त प्रश्न के उत्तर में प्रज्ञापनासूत्र के ग्यारहवें भाषापद का समग्र वर्णन जान लेना चाहिए। 1. [Q.] Bhante ! 'I contemplate. Is that a meaningful speech (avadharini bhasha) (In other words, is that utterance the carrier of thoughts or language ? ) [Ans.] Gautam ! For the answer of this question the eleventh chapter, Bhashapad, of Prajnapana Sutra should be repeated here. विवेचन : जिस भाषा के द्वारा अर्थ का अवबोध - ज्ञान होता है, वह अवधारिणी भाषा है। ( वृत्ति.) प्रज्ञापनासूत्र के ११ वें भाषापद में अनेक द्वारों से भाषा का वर्णन किया है। यथा - (१) भाषा के ४ भेद हैं-सत्या, मृषा, सत्या - मृषा (मिश्र) और असत्याऽमृषा (व्यवहारभाषा) । (२) भाषा का आदि (मूल) कारण - जीव है। (३) भाषा की उत्पत्ति - ( औदारिक, वैक्रिय तथा आहारक) शरीर से होती है। (४) भाषा का संस्थान - वज्र के आकार का है। (५) भाषा के पुद्गल - लोक के अन्त तक जाते हैं। (६) भाषारूप में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलअनन्तानन्तप्रदेशी स्कन्ध पुद्गल, असंख्यात आकाशप्रदेशों को अवगाहित पुद्गल; एक समय, दो समय यावत् दस समय संख्यात और असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल, पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस और आठ स्पर्शो में से चार स्पर्श (स्निग्ध, रूक्ष, ठण्डा, गर्म) वाले पुद्गल, तथा नियमतः छह दिशा के पुद्गल भाषा के रूप में गृहीत होते हैं । (७) सान्तर - निरन्तर - भाषावर्गणा के पुद्गल निरन्तर गृहीत होते हैं, किन्तु सान्तर त्यागे ( छोड़े) जाते हैं । सान्तर का अर्थ यह नहीं कि बीच में रुक-रुककर त्यागे जाते हैं, अपितु सान्तर का वास्तविक अर्थ यह है कि प्रथम समय में गृहीत भाषा - पुद्गल दूसरे समय में, तथा दूसरे समय में गृहीत तीसरे समय में त्यागे जाते हैं, इत्यादि । प्रथम समय में सिर्फ ग्रहण होता है, और अन्तिम समय में सिर्फ त्याग होता है; बीच के समयों में निरन्तर दोनों क्रियाएँ होती रहती हैं। यही सान्तर - निरन्तर का तात्पर्य है । (८) भाषा की स्थिति - जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट असंख्येय समय की । ( ९ ) भाषा का अन्तर (व्यवधान) - जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त का, उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। (१०) भाषा के पुद्गलों का ग्रहण और त्याग - ग्रहण काययोग से और त्याग वचनयोग से । ग्रहणकाल - जघन्य एक समय, उत्कृष्ट असंख्येय समय, त्यागकाल- जघन्य दो समय उत्कृष्ट असंख्येय सामयिक द्वितीय शतक : छठा उद्देशक Jain Education International (311) फफफफफ Second Shatak: Sixth Lesson For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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