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________________ मैथुनप्रत्ययिक सन्तानोत्पत्ति का निरूपण PROGENY THROUGH COPULATION ७. [प्र. ] एगजीवे णं भंते ! एगभवग्गहणेणं केवतियाणं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छति ? [उ. ] गोयमा ! जहन्नेणं इक्कस्स वा दोण्हं वा तिण्हं वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तस्स जीवाणं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छति। ७. [प्र. ] भगवन् ! एक जीव, एक भव की अपेक्षा कितने जीवों का पुत्र हो सकता है ? [उ. ] गौतम ! एक जीव, एक भव में जघन्य एक जीव का, दो जीवों का अथवा तीन जीवों का, और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व (दो सौ से लेकर नौ सौ तक) जीवों का पुत्र हो सकता है। 7. (Q.) Bhante ! How many living beings (jiva) can a soul (jiva) be progeny of? (Ans.) Gautam ! A soul (jiva) can be progeny of minimum one, two or three living beings (jiva) and maximum Shat-prithakatva (two hundred to nine hundred) living beings. ८. [प्र. १ ] एगजीवस्स णं भंते ! एगभवग्गहणेणं केवइया जीवा पुत्तत्ताए हव्यमागच्छंति ? [उ. ] गोयमा ! जहन्नेणं इक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हब्बमागच्छंति। [प्र. २ ] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जाव हव्वमागच्छंति ? _[उ. ] गोयमा ! इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणीए मेहुणवत्तिए नामं संजोए समुप्पज्जइ। ते दुहओ सिणेहं संचिणंति, संचिणित्ता तत्थ णं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हब्बमागच्छंति। ते तेणट्टेणं जाव हव्वमागच्छंति। ८. [प्र. १ ] भगवन् ! एक जीव के एक भव में कितने जीव पुत्ररूप में (उत्पन्न) हो सकते हैं ? [उ. ] गौतम ! जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट लक्षपृथक्त्व (दो लाख से लेकर नौ लाख तक) जीव पुत्ररूप में (उत्पन्न) हो सकते हैं। [प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य एक यावत् दो लाख से नौ लाख तक जीव पुत्ररूप में (उत्पन्न) हो सकते हैं ? [उ. ] हे गौतम ! कर्मकृत (नामकर्म से निष्पन्न अथवा कामोत्तेजित) योनि में स्त्री और पुरुष का जब मैथुनवृत्तिक (सम्भोग निमित्तक) संयोग निष्पन्न होता है, तब उन दोनों के स्नेह (पुरुष के वीर्य और स्त्री के रक्त = रज) का संचय (सम्बन्ध) होता है, फिर उसमें से जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट लक्षपृथक्त्व (दो लाख से लेकर नौ लाख तक) जीव पुत्ररूप में उत्पन्न होते हैं। हे गौतम ! इसीलिए पूर्वोक्त कथन किया गया है। ___8. [Q. 1] Bhante ! In one life-time how many progenies (jivas) can a living beings (jiva) give birth to ? | द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक (287) Second Shatak : Fifth Lesson 555555555555555555555555555555555) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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