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मागमगारागानागगगगगगगगगगगगगागागाभाग
fi (Bhagavan said) “Beloved of gods ! Do as you please and avoid f languor when doing a good deed.”
४०. तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हटे जाव नमंसित्ता मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
४१. तए णं से खंदए अणगारे मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं अहासम्मं काएण फासेति पालेति सोहेति तीरेति पूरेति किट्टेति अणुपालेइ आणाए आराहेइ, कारण फासित्ता जाव आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं जाव नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुभेहिं अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह। तं चेव।
४०. तत्पश्चात् स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त करके हर्षित हुए यावत् । भगवान महावीर को नमस्कार करके मासिक भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरण करने लगे।
४१. इसके बाद स्कन्दक अनगार के सूत्र (विधि) के अनुसार, कल्प (मर्यादा) के अनुसार, मार्ग । (पद्धति) के अनुसार, यथातत्त्व (स्वरूप के अनुसार) और सम्यक् प्रकार (समभाव) से स्वीकृत मासिक !
भिक्षुप्रतिमा का काया से स्पर्श किया, पालन किया, उसे शोधित किया, पार लगाया, पूर्ण किया, उसका । कीर्तन (गुणगान) किया, अनुपालन किया और आज्ञापूर्वक आराधन किया। उक्त प्रतिमा का काया से !
भली प्रकार स्पर्श करके यावत् उसका आज्ञापूर्वक आराधन करके जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आए और श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार बोले- " 'भगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो मैं द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा स्वीकार करके विचरण करना चाहता हूँ।' ___भगवान ने कहा-'देवानुप्रिय ! तुम्हें जिस प्रकार सुख हो, वैसा ही करो। किन्तु विलम्ब मत करो।'
40. Ascetic Skandak was pleased to get permission from Shraman Bhagavan Mahavir... and so on up to... after paying homage and
obeisance to Bhagavan Mahavir he embraced and commenced practice of F Bhikshu Pratima of one month duration.
41. Thereafter ascetic Skandak embraced the month-long Bhikshu Ī Pratima according to the scriptures (yathasutra), code of praxis F (yathakalp), prescribed procedure (yathamarg) and perfectly following
fundamentals (yathatattva), with equanimity (samata) and touching with the body (actually not just conceptually) sincerely observed (palit),
purified (shodhit; for transgressions), completed (purit; for breaking i fast), sang in praise of (kirtit) concluded (anupalit) and successfully i performed (aradhit) as per the sanction. Thus after touching with the
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द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
(261)
Second Shatak : First Lesson )))) ))))
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