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१. (१) (अन्यतीर्थिक पक्ष) भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा
करते हैं कि-'जो चल रहा है, वह अचलित है-चला नहीं कहलाता और यावत्-जो निर्जीर्ण हो रहा है, वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता ।'
(२) 'दो परमाणु - पुद्गल एक साथ नहीं चिपकते ।' दो परमाणु- पुद्गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते ? इसका कारण यह है कि दो परमाणु- पुद्गलों में स्निग्धता नहीं होती इसलिए 'दो परमाणु5 पुद्गल एक साथ नहीं चिपकते ।'
(३) 'तीन परमाणु - पुद्गल एक-दूसरे से चिपक जाते हैं।' तीन परमाणु- पुद्गल परस्पर क्यों 5 चिपक जाते हैं ? इसका कारण यह है कि तीन परमाणु- पुद्गलों में स्निग्धता ( चिकनाहट) होती है; इसलिए तीन परमाणु- पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं । यदि तीनों परमाणु- पुद्गलों का भेदन (विभाग) किया जाये तो दो भाग भी हो सकते हैं एवं तीन भाग भी हो सकते हैं। अगर तीन परमाणु- पुद्गलों के 5 दो भाग किये जायें तो एक तरफ डेढ़ परमाणु होता है और दूसरी तरफ भी डेढ़ परमाणु होता है। यदि तीन परमाणु- पुद्गलों के तीन भाग किये जायें तो एक-एक करके तीन परमाणु अलग-अलग हो जाते हैं। इसी प्रकार यावत् चार परमाणु- पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए।
(४) 'पाँच परमाणु- पुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं और वे दुःखरूप (कर्मरूप) में परिणत होते हैं।
5 वह दुःख (कर्म) भी शाश्वत है और सदा सम्यक् प्रकार से उपचय को प्राप्त होता है और अपचय को प्राप्त होता है।'
(५) 'बोलने से पहले की जो भाषा (भाषा के पुद्गल) है, वह भाषा है। बोलते समय की भाषा अभाषा है और बोलने का समय व्यतीत हो जाने के बाद की बोली गई भाषा, भाषा है।'
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[प्र. ] 'यह जो बोलने से पहले की भाषा, भाषा है और बोलते समय की भाषा, अभाषा है तथा
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बोलने के समय के बाद की भाषा, भाषा है; सो क्या बोलते हुए पुरुष की भाषा है या न बोलते हुए 5 पुरुष की भाषा है ?'
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[ उ. ] 'न बोलते हुए पुरुष की वह भाषा है, बोलते हुए पुरुष की वह भाषा नहीं है ।'
(६) 'करने से पूर्व की जो क्रिया है, वह दुःखरूप है, वर्तमान में जो क्रिया की जाती है, वह
5 दुःखरूप नहीं है और करने के समय के बाद की कृत क्रिया भी दुःखरूप 'है ।'
[प्र.] करने से पूर्व की क्रिया है, दुःख का कारण है; की जाती हुई क्रिया दुःख का कारण नहीं है
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5 और करने के समय के बाद की क्रिया दुःख का कारण है; तो क्या वह करने से दुःख का कारण है या न करने से दुःख का कारण है ?
[ उ. ] न करने से वह दुःख का कारण है, करने से दुःख का कारण नहीं है; ऐसा कहना चाहिए।
[ ७ ] अकृत्य दुःख है, अस्पृश्य दुःख है और अक्रियमाण कृत दुःख है। उसे न करके प्राण, भूत,
जीव, सत्व, वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए।
भगवतीसूत्र (१)
(216)
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Bhagavati Sutra (1)
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