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चित्र परिचय-३
Illustration No.3
मृगघातक को कितनी क्रियाएँ (१) कोई मृगों का शिकार करने वाला जंगल में मृगों को फँसाने के लिए नदी अथवा सरोवर के पास वाले गड्ढे में जाल बिछाकर झाड़ियों, उन्हें फँसाने की ताक में वृक्षों की ओट में छुपकर खड़ा रहता है। तब तक उसे कायिकी, आधिकरणिकी और प्रादेषिकी ये तीन क्रियाएँ लगती हैं।
(२) जब वह शिकारी मृगों को जाल में फँसाकर बाँध लेता है, परन्तु मारता नहीं है, तब तक उसे तीन क्रियाएँ प्रथम तथा चौथी पारितापनिकी-ये चार क्रियाएँ लगती हैं।
(३) जब वह निर्दयता पूर्वक मृग आदि का वध करने लगता है, तब उक्त चारों क्रियाएँ तथा प्राणातिपातिकी। ये पाँचों क्रिया वाला होता है। यही उदाहरण प्रत्येक सावद्य क्रिया प्रवृत्ति के सम्बन्ध में समझना चाहिए।
-शतक १, उ. ८, सूत्र ४
DEER-HUNTER'S INVOLVEMENT IN
ACTIVITIES (1) A deer-hunter sets a trap to kill a deer in a bush near a river or a lake and stands hiding behind trees. So long as he waits he is involved in three activities--kaayiki (physical activity), aadhikaraniki (activity of collecting instruments of violence) and praadveshiki (activity of harbouring aversion).
(2) So long as he entraps deer but does not kill it he is involved in four activities—the aforesaid three and paaritapaniki (activity of inflicting pain).
(3) When he also kills the deer cruelly he is involved in five activities—the aforesaid four and pranatipatiki (activity of killing a living being). Such person is involved in all the five activities. This example holds good for all sinful activities.
-Shatak 1, lesson 8, Sutra 4
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