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ज (Ans.) Gautam ! A singularly unrighteous or ignorant human being 41 can acquire bondage of life-span as an infernal being, life-span as an animal, life-span as a human being and life-span as a divine being. Then he is born as an infernal being after acquiring life-span as an infernal
being, as an animal after acquiring life-span as an animal, as a human fi being after acquiring life-span as a human being and as a divine being after acquiring life-span as a divine being
२. [प्र. ] एगंतपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेरइयाउयं पकरेइ ? जाव देवाउयं किच्चा देवलोएसु उववज्जति ?
[उ. ] गोयमा ! एगंतपंडिए णं मणुस्से आउयं सिय पकरेति, सिय नो पकरेति। जइ पकरेइ नो नेरइयाउयं पकरेइ, नो तिरियाउयं पकरेइ, नो मणुस्साउयं पकरेइ, देवाउयं पकरेति। नो नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ, णो तिरि., णो मणुस्सा., देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति।
[प्र. ] से केणटेणं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति ?
[उ. ] गोयमा ! एगंतपंडितस्स णं मणुस्सस्स केवलमेव दो गतीओ पन्नायंति, तं जहा-अंतकिरिया 9 चेव, कप्पोववत्तिया चेव। से तेणटेणं गोयमा ! जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति। ॐ २. [प्र. ] भगवन् ! एकान्तपण्डित मनुष्य क्या नरकायु बाँधता है ? या यावत् देवायु बाँधता है ? है और यावत् देवायु बाँधकर देवलोक में उत्पन्न होता है ?
[उ. ] हे गौतम ! एकान्तपण्डित मनुष्य, कदाचित् आयु बाँधता है और कदाचित् आयु नहीं # बाँधता। यदि आयु बाँधता है तो देवायु बाँधता है, किन्तु नरकायु, तिर्यंचायु और मनुष्यायु नहीं बाँधता।
वह नरकायु नहीं बाँधने से नारकों में उत्पन्न नहीं होता, इसी प्रकार तिर्यंचायु न बाँधने से तिर्यंचों में म और मनुष्यायु न बाँधने से मनुष्यों में भी उत्पन्न नहीं होता; किन्तु देवायु बाँधकर देवों में उत्पन्न होता है।
[प्र. ] भगवन् ! इसका क्या कारण है कि देवायु बाँधकर देवों में उत्पन्न होता है ?
[उ. ] गौतम ! एकान्तपण्डित मनुष्य की केवल दो गतियाँ होती हैं-(१) अन्तक्रिया, और ॐ (२) कल्पोपत्तिका (सौधर्मादि कल्पों में उत्पन्न होना)। इस कारण हे गौतम ! एकान्तपण्डित अनुष्य के देवायु बाँधकर देवों में उत्पन्न होता है।
2. [Q.] Bhante ! Does a singularly righteous or enlightened (ekanta卐 pundit) human being acquire bondage of life-span as an infernal being,
...and so on up to... is he born as a divine being after acquiring life-span as a divine being ?
[Ans.] Gautam ! A singularly righteous human being sometimes 4 acquires bondage of life-span and sometimes not. In case he acquires
bondage of life-span it is only as a divine being and never as an infernal
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भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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