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कमठ का जीव अनेक योनियों में भटकता हुआ एक दरिद्र ब्राह्मण के घर उत्पन्न हुआ। जन्म लेते ही उसके माता-पिता मर गये। वह गलियों में भटकता, भीख माँगता राजमार्ग पर पड़ा रहता। उसकी दुर्दशा देखकर लोग उसे 'कमठ' (कर्महीन) कहने लग गये ।
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एक बार कोई संन्यासी वहाँ आया । कमठ ने उनसे पूछा - "बाबा ! ये धनवान लोग मेवा-मिष्ठान्न खाते हैं, महलों में रहते हैं और मैं दाना-दाना माँगता हूँ फिर भी पेट नहीं भरता। ऐसा क्यों है ?"
संन्यासी - "यह सब पुण्यों का खेल है। इन्होंने पूर्वजन्म में तप- जप, दान किया है। उसी के फलस्वरूप यहाँ आनन्द करते हैं। "
कमठ–‘'बाबा ! क्या मैं भी तप कर सकता हूँ ? कैसे करूँ ?”
संन्यासी ने उसे तापस दीक्षा दे दी और कहा - "एकान्त में जाकर तप कर । तप से सब कुछ मिलता है।"
घूमता- घूमता कमठ तापस वाराणसी गंगा नदी के तट पर आकर तप करने लगा।
एक दिन पार्श्वकुमार महलों में बैठे थे। देखा, सैकड़ों नर-नारी गंगा तट की तरफ जा रहे हैं। किसी के हाथ में फूलों के टोपले हैं, किसी के हाथों में प्रसाद है।
क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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