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फिर चन्दन केसर आदि सुगंधित पदार्थों का लेप किया । सुन्दर वस्त्रों से लपेट लिया। सभी इन्द्र हाथ जोड़कर प्रभु की स्तुति करने लगे-"हे ज्ञान दिवाकर ! हे साक्षात् धर्म के अवतार ! हे मोक्षमार्ग के प्रकाशक ! हम आपको नमस्कार करते हैं।" फिर बाल प्रभु को माता के पास लाकर सुला दिया । प्रतिबिम्ब उठा लिया। #
प्रातःकाल प्रियवंदा दासी ने आकर राजा को सूचना दी - "महाराज ! महारानी ने सूर्य के समान तेजस्वी शिशु को जन्म दिया है।'
राजा आये। शिशु को देखा। शिशु के पैर की तरफ संकेत कर राजा ने कहा-'देखो, बालक के पैर पर नागदेव का चिन्ह है। अवश्य यह नाग जाति का उद्धार करेगा । "
रानी ने कहा- "महाराज ! आपका कथन सत्य है। गर्भकाल में एक रात घोर अंधेरे में मेरे पास से एक काला नाग आया था। मेरे अँगूठे का स्पर्श कर वह चला गया।"
# समस्त देवों और इन्द्रों ने नंदीश्वर द्वीप जाकर वहाँ के ५२ चैत्यों में अष्टाह्निका महोत्सव कर प्रभु-भक्ति की ।
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