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और बैर की तीव्र ज्वाला जलने लगी। साँप ने मुनि के पूरे शरीर पर आँटे लगाये। स्थान-स्थान पर डंक मारे। बार-बार डंक मारकर मुनि के शरीर को छलनी बना दिया।
तीव्र जहर की वेदना में भी मुनि शांत खड़े रहे। सोचने लगे-'यह नाग मेरा शत्रु नहीं, मित्र है। इसके कारण ही मुझे आज वेदना सहने का अवसर मिला है। मैं समभाव के साथ इस पीड़ा को सहन करूँगा तो शीघ्र ही मेरे कर्मों का नाश हो जायेगा।' समता भाव के साथ देह त्यागकर मुनि किरणवेग बारहवें स्वर्ग में देव बने।
विषधर नाग एक दिन दावानल में जल
गया। मरकर छठी नकर में गया। वज्रनाभ और कुरंग भील ___ मरुभूति का जीव महाविदेह की शुभंकरा नगरी में एक राजकुमार बना।
आओ वजकुमार ! हमारे
पास आकर बैठो। बालक का शरीर अत्यंत बलिष्ठ और वज जैसा सुदृढ़ होने के कारण उसका नाम वजनाभ रखा गया
___ छोटी-सी आयु में ही वजभान बहुत ही बलिष्ठ और ताकतवर दिखाई देता था। कुछ बड़ा होने पर राजकुमार को विद्याध्ययन हेतु गुरुकुल में भेजा गया। वह शीघ्र ही चौंसठ कलाओं में निपुण हो गया। बालक वजनाभ विद्याध्ययन पूर्ण करके नगर वापस लौट आया। _ तरुण होने पर माता-पिता ने कहा-"पुत्र! अब हम दोनों संसार त्यागकर दीक्षा लेना चाहते हैं। किन्तु इससे पहले दो काम तुझे करने हैं।"
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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