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सुन्दरियाँ नृत्य बन्द कर आश्चर्य से उन्हें देखने लगीं। कुछ देर बाद सनत्कुमार ने पूछामित्र ! यहाँ कैसे कुमार ! पहले तुम बताओ, ये सब कौन पहुँचे। नगर में हैं? उस अश्व ने तुमको कहाँ पटक दिया फिर क्या हुआ ?
सब कुशलक्षेम तो हैं।
रूप का गर्व
तभी एक तरुणी फल और शीतल पेय लेकर आ गई। दोनों मित्र वहाँ शिला पर बैठकर बातें करने लगे। कुछ देर बाद पास में बैठी एक रूपवान तरुणी से सनत्कुमार ने कहाबकुलमति ! तुम अपने देवर को वह सब सुनाओ जो घटित हुआ।
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बकुलमति सुनाने लगी-उस दिन आपके मित्र को लेकर अश्व घने जंगल में दौड़ता रहा, दौड़ता रहा। अन्त में थककर इन्होंने लगाम छोड़ दी। घोड़ा चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा। उसके मुँह से झाग निकले और मर गया। उस भयानक मरुस्थल में भूखे-प्यासे भटकते हुए ये एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने बैठे, वहीं मूर्च्छित हो गये। उस वृक्ष पर एक यक्ष रहता था। उसने देखा
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कोई पुण्यशाली पुरुष आपत्ति में फँसा है। मुझे इसकी मदद करनी चाहिए।
कोमल हृदय यक्ष ने सनत्कुमार के चेहरे पर सनत्कुमार का कण्ठ प्यास से सूख रहा था। शीतल जल छिड़ककर उसे सचेत किया।
यक्ष ने उसे जल लाकर पिलाया।
लो ! इस शीतल जल से अपनी प्यास बुझाओ।
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