________________
रूपका गर्व कुछ समय बाद सुन्दर वस्त्र-आभूषणों से सम्जित फिर कुछ उदास होकर सिर धुनने लगेहो चक्रवर्ती सिंहासन पर आकर बैठे। ब्राह्मणों को रामसभा में बुलाया गया। दोनों ब्राह्मण आये कुछ देर तक शरीर को देखते रहे।
नहीं ! अब वह
विप्रवर ! क्या फर्क बात नहीं रही।
पड़ गया इतनी-सी
देर में?
DAYALAM
alafalna
ब्राह्मण
ब्राह्मणों ने विनम्रतापूर्वक कहा
राजन् ! हमने स्वर्ग में | आपके अद्वितीय रूप-लावण्य की प्रशंसा सुनी थी। हमें विश्वास नहीं हुआ, किन्तु व्यायामशाला में आपको देखकर शक्रेन्द्र का
कथन सत्य लगा।
राजन् ! अब आपका ।
वह सौन्दर्य क्षीण हो परिहा है। शरीर में अनेक
रोग घुस चुके हैं -आखिर यह मानव-देह का तो क्षण-अंगुर जो है।
तो फिर अब क्या परिवर्तन हो
गया?
चक्रवर्ती ने ब्राह्मणों का उपहास करते हुए कहा
ऐसा कैसे हो सकता है। तुम्हें भ्रान्ति तो
नहीं हुई?
महाराज! प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत है। अभी आप
थूककर देखिए।
श्र
24
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org