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रूप का गर्व
दोनों देव आकाश से पृथ्वी पर आये और और चक्रवर्ती सनत्कुमार के महल के द्वार पर ब्राह्मण का रूप धारण किया।
पहुँचे। द्वारपाल से कहा
चक्रवर्ती सनत्कुमार प्रातः व्यायाम और तेल मालिश करने के बाद स्नान की तैयारी कर रहे थे। तभी द्वारपाल ने आकर निवेदन कियाराजन् ! दो वृद्ध ब्राह्मण अभी इसी
समय आपका
दर्शन चाहते हैं।
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प्रजा के लिए मेरा
द्वार सदा खुला है। उन्हें आने दो।
आप यहीं ठहरिये। मैं आज्ञा लेकर आता हूँ।
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वाह ! क्या शरीर का गठन है?
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दोनों ब्राह्मण विशाल स्नानागार में आये और विस्मित से चक्रवर्ती की अद्भुत सुन्दरता को निहारने लगे
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हम चक्रवर्ती के दर्शन करना
चाहते हैं।
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कितनी सुकुमारता और कोमलता है ?
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