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(रूप का गर्व
चक्रवर्ती सम्राट संसार के सबसे विशाल साम्राज्य और अखूट संपदा का एक छत्र स्वामी होता है। इस युग में बारह चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनमें चौथे चक्रवर्ती सम्राट थे सनत्कुमार।
सनत्कुमार के रूप-लावण्य एवं शरीर-सौंदर्य की देवता भी चर्चा करते थे। ऐसा अद्भुत सौंदर्य धरती पर किसी अन्य का नहीं था।
विशाल साम्राज्य से भी अधिक चक्रवर्ती सनत्कुमार को अपने रूप का गर्व था। देवताओं ने सम्राट का यह गर्व मिटाने के लिए ब्राह्मण वेश में आकर कहा-आपका
शरीर सौन्दर्य तो सचमुच अद्भुत है, परन्तु जिस शरीर पर आपको इतना गर्व है, उस - शरीर के भीतर कितने रोग छिपे हैं, "जरा विचार करो।" इसी बात का प्रत्यक्ष अनुभव
करने से सम्राट की शरीर के प्रति आसक्ति और गर्व भंग हो गया। अहंकार टूट गया और वे मुनि बनकर तपस्या करने लग गये।
ज्ञानियों ने इस उदाहरण से यही शिक्षा दी है कि "शरीरं व्याधि मन्दिरम्"शरीर तो रोगों का घर है। इस शरीर का महत्व सुन्दरता से नहीं, इससे कल्याण साधने में है। यही इस कथा की प्रेरणा है। -महोपाध्याय विनय सागर
-श्रीचन्द सुराना "सरस"
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