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फिर वह अकेला ही उस बियावान वन में भ्रमण करने लगा। तभी एक सात मंजिला महल दिखाई दिया
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रूप का गर्व
महल का द्वार खुला हुआ था। वह सीधा महल के अन्दर घुस गया। घूमते-घूमते जैसे ही पहली मंजिल पर पहुँचा उसे एक नारी का क्रन्दन सुनाई दियाकोई मेरी रक्षा करो ! बचाओ। मुझे यहाँ से निकालो।
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इस जंगल में
यह महल ! जरूर
कोई मनुष्य भी यहाँ होगा?
वह महल की ओर चल पड़ा।
यह सोचकर वह सावधानी से क्रन्दन की दिशा में चलता हुआ एक कक्ष में पहुँचा। देखा एक रूप लावण्यवती आभूषणों से सजी सुन्दरी पलंग पर बैठी करुण स्वर में पुकार कर रही है। अरे! यह तो मेरा नाम हे कुरुकुल कलाधर पुकार रही है। कहीं सनत्कुमार ! इस जन्म में कोई मायाजाल तो नहीं न सही अगले जन्म में है। मुझे होशियार आप ही मेरे पति बनना। रहना चाहिए।
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यहाँ नारी का क्रन्दन ! चलकर देखना चाहिए?
फिर सावधान होकर सुन्दरी के सामने जाकर उससे पूछा- सुन्दरी ! यह सनत्कुमार कौन है? तुम कौन हो? यहाँ कैसे आई और क्यों रो रही हो?
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