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भगवान नेमिनाथ आकाश-मंडल में स्थित स्वर्ग के देव-देवेन्द्र-बृहस्पति आदि माता शिवादेवी को नमस्कार करने लगे।
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(हे माता ! धन्य हैं आप ! आपके उदर से जगत् के तारणहार २२वें तीर्थंकर ,000
नेमिनाथ का जन्म होगा, समूचे संसार में धर्म का प्रकाश फैलेगा।
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| रानी उठी और पास के कक्ष में सोये महाराज समुद्रविजय के पास आई। रानी के आने की आहट से महाराज की नींद उचट गई। महाराज ने पूछा
"महारानी ! आप! इस मध्यरात्रि में ......?
| रानी शिवादेवी ने महाराज को अपने स्वप्न सुनाते हुए कहा
क्या आपको नहीं लग रहा है इस अंधेरी रात में जैसे दिशाओं में प्रकाश बिखर गया है। हवा में भीनी-भीनी महक-सी
आ रही है। आसमान से खुशियों की बौछारें हो रही हैं ? सितारे गा रहे हैं।
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समुद्रविजय बोले
अवश्य ! ही आप जगत् के तारणहार उस महापुरुष की माता बनने वाली हैं जिसके चरण-स्पर्श से ही पापियों का उद्धार हो जायेगा। धरती पर
धर्म की दिव्य वर्षा होगी।
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महाराज की बात सुनकर प्रसन्न रानी अपने कक्ष में वापस आ गई और बाकी रात णमोकार मंत्र का जाप करती रही।
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