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________________ भगवान नेमिनाथ आकाश-मंडल में स्थित स्वर्ग के देव-देवेन्द्र-बृहस्पति आदि माता शिवादेवी को नमस्कार करने लगे। Serving jinsh (हे माता ! धन्य हैं आप ! आपके उदर से जगत् के तारणहार २२वें तीर्थंकर ,000 नेमिनाथ का जन्म होगा, समूचे संसार में धर्म का प्रकाश फैलेगा। 07388 gyanmandir@k PA 1300 Oooo | रानी उठी और पास के कक्ष में सोये महाराज समुद्रविजय के पास आई। रानी के आने की आहट से महाराज की नींद उचट गई। महाराज ने पूछा "महारानी ! आप! इस मध्यरात्रि में ......? | रानी शिवादेवी ने महाराज को अपने स्वप्न सुनाते हुए कहा क्या आपको नहीं लग रहा है इस अंधेरी रात में जैसे दिशाओं में प्रकाश बिखर गया है। हवा में भीनी-भीनी महक-सी आ रही है। आसमान से खुशियों की बौछारें हो रही हैं ? सितारे गा रहे हैं। RA करणER समुद्रविजय बोले अवश्य ! ही आप जगत् के तारणहार उस महापुरुष की माता बनने वाली हैं जिसके चरण-स्पर्श से ही पापियों का उद्धार हो जायेगा। धरती पर धर्म की दिव्य वर्षा होगी। . महाराज की बात सुनकर प्रसन्न रानी अपने कक्ष में वापस आ गई और बाकी रात णमोकार मंत्र का जाप करती रही। Jain Education International 2 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002819
Book TitleBhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandravijay, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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