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भगवान नेमिनाथ
दुबारा बिजली चमकी तो राजीमती ने भी देखा, सामने कोई श्रमण खड़ा है। उसने तुरन्त गीली साड़ी शरीर पर लपेट ली। और हाथ-पाँव सिकोड़कर अंगों को छुपाती हुई भयभ्रान्त हरिणी-सी एक तरफ बैठ गई।
कोई श्रमण खड़ा है।
रथनेमि का उद्भ्रान्त मन बेकाबू हो उठा था। उसने कहाहे सुरूपे, डरो मत! मैं रथनेमि हूँ। मैं तुमसे प्यार करता हूँ, स्नेह करता हूँ, तेरे बिना मेरा जीवन व्यर्थ हो रहा है, आओ, इस सुहावने मौसम हम यौवन का आनन्द लेवें।
रथनेमि के पाँव थम गये। वह स्तब्ध खड़ा पुकारने लगा
सुन्दरी ! भाग्य ने आज यह अवसर दिया है। आओ, इस अवसर का आनन्द लो
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| राजीमती सहम कर छुपने की चेष्टा करती हुई बोलीरथनेमि । रुक जाओ ! आगे मत बढ़ना ! धिक्कार है तुम्हें, जो बड़े भाई का वमन पीना चाहते हो.... उज्ज्वल वृष्णि कुल में जन्म लेकर भी कौवे, कुत्ते की तरह त्यागी हुई वस्तु का भोग करना चाहते हो....?
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