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________________ भगवान नेमिनाथ प्रभु की स्वीकृति मिलते ही वासुदेव श्रीकृष्ण आदि ने राजीमती का दीक्षा महोत्सव किया। राजीमती ने अपने भँवरे जैसे काले कोमल केशों का हाथ से लुंचन किया। श्वेत वस्त्र धारण कर वह सैकड़ों यादव कन्याओं के साथ प्रभु नेमिनाथ के समक्ष उपस्थित हुई। आर्या यक्षिणी ने सभी को मुनि दीक्षा प्रदान की। सर्वप्रथम वासुदेव श्रीकृष्ण ने राजीमती को शिक्षा दी कुमार रथनेमि भी इसी समय भगवान के समक्ष उपस्थित हुआ प्रभु! मेरा मन मोह मूढ़ होकर भटकता रहा है। अब मैं अपने पापों का पश्चात्ताप कर दीक्षा लेना चाहता हूँ। प्रभु की स्वीकृति मिली। हे कन्ये ! तू इन्द्रियों को जीतकर मन को संयम में रमाते रहना। इस घोर संसार-सागर को वैराग्य नौका से शीघ्र ही पार करना। Jain Education International जैसा सुख लगे वैसा करो। PADONDO कुमार रथनेमि भी मुनि बनकर रैवतगिरि की गुफाओं में तप-ध्यान करने चले गये। 28 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.arg
SR No.002819
Book TitleBhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandravijay, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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