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________________ जरा विद्या का विनाश और शंखेश्वर महातीर्थ की उत्पत्ति जरासंध के साथ युद्ध में भगवान नेमिनाथ ने जब शंखध्वनि की तो जरासंध की सेना के छक्के छूट गये। वहीं यादव सेना में हर्ष और उल्लास का संचार हो गया। इस प्रसंग के साथ कुछ प्राचीन चरित्रों में एक महत्त्वपूर्ण घटना का भी वर्णन है जो इस प्रकार है जरासंध ने यादव सेना को जीतने के लिए उस पर जरा नामक दुष्ट विद्या छोड़ी। जिसके दुष्प्रभाव से यादव सैनिक मूर्छित और जरा-जीर्ण होकर निस्तेज हो गये। श्रीकृष्ण ने यह देखा तो चिंतित हुए। श्री नेमिकुमार के निर्देशानुसार अट्ठम तप किया तब भगवान पार्श्वनाथ की एक दिव्य मूर्ति पाताल से प्रगट हुई। माता पद्मावती ने दर्शन देकर बताया-“अतीत की चौबीसी में दामोदर नामक नवम तीर्थंकर के समय में अषाढ़ी नामक श्रावक ने यह मूर्ति भराई थी, इस मूर्ति का स्नात्र-प्रक्षाल जल सेना पर छिटकाव करो।" पद्मावती देवी के कथनानुसार श्रीकृष्ण ने मूर्ति का स्नात्रप्रक्षाल जल सेना पर छिटका तो दुष्ट जरा विद्या का दुष्प्रभाव दूर हुआ। सभी सैनिक सज्जित होकर उठे। जरासंध युद्ध में पराजित हो गया। तभी श्रीकृष्ण ने विजय उल्लास में शंख बजाया। तब से उस स्थान पर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित हुई और वह शंखेश्वर तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। शंखेश्वर महातीर्थ की वह मूर्ति आज भी इस दिव्य महिमा से मंडित मानी जाती है। आधार-आचार्य श्री जिनप्रभ सूरी रचित (१४वीं शताब्दी) विविध तीर्थ कल्प, पार्श्वनाथ कल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002819
Book TitleBhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandravijay, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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