________________
सिद्ध चक्र का चमत्कार
शरीर शक्ति से हजार गुनी प्रखर बुद्धि शक्ति है, लाख गुनी प्रज्ञा शक्ति तो अनन्त गुनी प्रचण्ड है आत्म शक्ति। आत्म शक्ति को अध्यात्म शक्ति भी कहते हैं। साधारण मानव जिस कार्यसिद्धि की कल्पना भी नहीं कर सकता, वे कार्य अध्यात्म शक्ति के जागरण से सहज ही सम्पन्न हो जाते हैं। इसलिए वे कल्पनातीत कार्य, सिद्धियाँ मनुष्य को चमत्कार प्रतीत होते हैं।
नवकार महामंत्र अध्यात्म शक्ति का अक्षय स्रोत है। नवकार मंत्र में पंच परमेष्टी का स्मरण कर उस भाव में आत्म-रमण किया जाता है। इन पाँच पदों के साथ ज्ञान-दर्शन- चारित्र-तप रूप चार पद का भी अपूर्व अचिंत्य महत्व होने के कारण इसे नवपद भी कहा जाता है। नवपद की आराधना का जैन परम्परा में विशिष्ट महत्व है। नवपद की संरचना बताने वाली आकृति सिद्धचक्र के रूप में प्रसिद्ध है। इसलिए नवपद आराधना या सिद्धचक्र आराधना का एक ही अर्थ है लोकोत्तम शक्तियों की उपासना / आराधना कर आत्म-रमण करना ।
हजारों वर्ष पूर्व मैनासुन्दरी ने नवपद की आराधना की थी। मैनासुन्दरी अटूर आत्मविश्वास, दृढ़निष्ठा तथा कर्म सिद्धान्त के प्रति समर्पित ज्ञानमयी शक्ति का रूप है। उसने संसार को यह बता दिया कि अपने सुख-दुख का कर्त्ता आत्मा स्वयं ही है और स्वयं ही उसका फल भोगता है।
ज्ञान और कर्म का सामंजस्य है उसके जीवन में। धर्मनिष्ठा के साथ आदर्श पतिव्रत-धर्मकर्त्तव्य-परायणता और सुख-दुख में तनाव मुक्त संतुलित जीवन जीने की शैली मैनासुन्दरी से सीखनी चाहिए। कष्टों, भयों व प्रताड़नाओं के झांझावात में भी मैनासुन्दरी ने आत्मविश्वास और नवपद-श्रद्धा का दिव्य दीपक बुझने नहीं दिया। उसने ज्ञानी गुरू जनों से नवपद आराधना की विधि सीखकर साधना द्वारा जो कुछ चमत्कार अनुभव किये समूचा संसार उसके सामने विनत हो गया।
मैनासुन्दरी की आराधना के आदर्शानुरूप आज भी हजारों श्रद्धालु नवपद ओली तप के रूप में यह आराधना करके सुख-शान्ति की अभिवृद्धि का अनुभव करते हैं।
प्रस्तुत सिद्धचक्र का चमत्कार में श्रीपाल - मैनासुन्दरी के पवित्र चरित्र का एक भाग चित्रित है। अनुयोग प्रवर्तक उपाध्याय मुनिश्री कन्हैयालाल जी म. 'कमल' के विद्वान शिष्य श्री विनय मुनिजी ने इसमें नवपद अर्थात् सिद्धचक्र आराधना- फल की रोचक कथा प्रस्तुत की है।
—-श्रीचन्द सुराना सरस
लेखक श्री विनय मुनि " वागीश
संयोजक एवं प्रकाशक संजय सुराना
Jain Education International
संपादक
श्रीचन्द सुराना 'सरस'
© सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन राजेश सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन ए 7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282002 दूरभाष : (0562) 351165, 51789 के लिये प्रकाशित एवं लक्ष्मी प्रिंटींग प्रेस में मुद्रित
For Private & Personal Use Only
चित्रण डा. त्रिलोक
1555
www.jainelibrary.org