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सिद्धचक्र का चमत्कार राजा ने उन्हें ठहरने के लिए नगर के बाहर एक पुराना खंडहर-सा भवन दे दिया। रात को जब मैनासुन्दरी श्रीपाल के निकट आकर चरण स्पर्श करने लगी तो श्रीपाल अचकचाकर बोल उठा
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मैना ने श्रीपाल के मुँह पर हाथ रखते हुए कहा
ना ! ना ! मुझे स्पर्श मत करना ! मेरे स्पर्श से तुम्हारी यह कंचन काया भी गल जायेगी। तुम मुझसे दूर रहकर कहीं भी सुख से..
नहीं, नहीं स्वामी ! ऐसी अशुभ बात मुँह से मत निकालिए। पत्नी तो छाया की तरह पति के साथ ही रहती है.. अब हम दोनों का सुख-दुःख एक है।
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