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________________ करुणानिधान भगवान महावीर ध्यान पूर्ण होने पर भगवान भिक्षा के लिए पास ही मध्यम पावा नामक गांव में सिद्धार्थ वणिक के घर पधारे। वणिक के पास उस समय उसका मित्र खरक वैद्य बैठा था। भगवान को देखकर उसने वणिक से कहा मित्र ! इस श्रमण के मुख पर बड़ा तेज चमक रहा है। परन्तु साथ ही हल्का-सा पीड़ा भाव भी DIL है। लगता है इन्हें कोई अन्तशल्य (भीतरी पीड़ा) खटक रहा है। ऐसे महापुरुष को कोई भीतरी पीड़ा है तो हमें तुरन्त उपचार करना चाहिए। दोनों ने मिलकर कीलें निकालने के साधन मुटाये। भगवान के शरीर पर तेल का लेप किया और संडासी से खींचकर कील बाहर निकाल दी। भिक्षा लेकर महा श्रमण वापस चले गये। सिद्धार्थ तथा खरक वैद्य उनके पीछे-पीछे उद्यान में पहुंचे और प्रभु के शरीर का निरीक्षण किया। माप सिद्धार्थ, गमब हो गया। किसी 7 दुष्ट ने इनके कानों में आर पार कीलें ठोंक दी है। आह ! आह Jain Education Intemallonal For P & Fersonal use only 55
SR No.002809
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size14 MB
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