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करुणानिधान भगवान महावीर एक बार भगवान महावीर नाव में बैठकर गंगा नदी पार कर रहे थे। सुदंष्ट्र नामक नाग कुमार देव ने उनको देखा
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अरे ! यही श्रमण महावीर है, जो पिछले जन्म AS में त्रिपृष्ट वासुदेव था और मैं केसरी सिंह !
इसी ने मुझे चीरकर मार डाला था। आज मैं
अपने वैर का बदला लेकर रहूँगा।
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पिछला वैर याद आते ही नागकुमार क्रोध में तिलमिला उठा।
उसने गंगा में जोरदार तूफान पैदा कर दिया। नाव डगमगाने लगी। यात्री घबराकर हा-हाकर करने लगे। भगवान महावीर ध्यान में स्थिर बैठे थे यात्री हाथ जोड़कर उनसे पुकार करते हैं।
(प्रभो ! आज आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। इस आपत्ति से हमें।
उबारिए।
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